________________
प्रध्याय
12
जैनों की साहित्य-सेवा
(क)
ससार मे साहित्य का निर्माण क्या हुआ मानों अतीत से उसका जुडा हुआ सम्बन्ध स्पष्ट नज़र आने लगा। साहित्य ने मनुष्य समाज की महान् कलाकृतियों तथा उपलब्धियों को लिपि-बद्ध करके अगली पीढी के लिये सुरक्षित रखा है । साहित्य ने अदृश्य विचारों को मूर्त रूप देकर सभ्यता व संस्कृति की बेल को पल्लवित तथा पुष्पित रखने के लिये कितनी अविस्मरणीय सेवा की है।
जिस देश या जाति का कोई साहित्य नहीं है उसकी दशा पाषाणयुगीन व्यक्ति' की सी होती है। जिस देश का साहित्य समृद्ध नही होता, वह पिछड़ा हुआ, विचारहीन और असभ्य देश माना जाता है।
आपका मस्तक गर्व से उन्नत हो जायेगा और छाती खुशी से फूल उठेगी जब आपको यह मालूम होगा कि
'जैनो ने भारतीय साहित्य को अमूल्य मौलिक रत्न दिये हैं'। साहित्य की कोई ऐसी शाखा नही जिसे उन्होने चार चांद न लगाये हो । ___ भारत की प्राचीन भाषाओं सस्कृत, प्राकृत तथा प्रादेशिक भाषाओं जैसे-मागधी, अर्धमागधी, शौरसेनी, अपभ्र श, तमिल, कन्नड तथा अन्य द्रवेडियन मापाओं में विपुल साहित्य सजन किया है। जैन धर्म मे प्रकाण्ड जैनाचार्य हो गये हैं जो प्रबल ताकिक, वैयाकरण. कवि और दार्शनिक थे। उन्होंने जैन धर्म के साथ साथ भारतीय साहित्य के अन्य क्षेत्रों में भी अपनी लेखनी के जौहर दिखाये हैं।