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________________ विविध साधना-मार्ग ३५ कारण माना और यह बताया कि ये तीनों एक-दूसरे से अलग होकर नहीं, वरन् समवेत रूप में ही मोक्ष को प्राप्त करा सकते हैं । उसने तीनों को समान माना और उनमें से किसी को भी एक के अधीन बनाने का प्रयास नहीं किया। हमें इस भ्रांति से बचना होगा कि श्रद्धा, ज्ञान और आचरण ये स्वतन्त्ररूप में नैतिक पूर्णता के मार्ग हो सकते हैं । मानबीय व्यक्तित्व और नैतिकसाध्य एक पूर्णता है और उसे समवेत रूप में ही पाया जा सकता है । बौद्ध परम्परा और जैन परम्परा दोनों ही एकांगी दृष्टिकोण नहीं रखते हैं । बौद्धपरम्परा में भी शील, समाधि और प्रज्ञा अथवा प्रज्ञा, श्रद्धा और वीर्य को समवेत रूप में ही निर्वाण का कारण माना गया है। इस प्रकार बौद्ध और जैन परम्पराएँ न केवल अपने साधन मार्ग के प्रतिपादन में वरन् साधन-त्रय के बलाबल के विषय भी समान दृष्टिकोण रखती हैं । वस्तुतः नैतिक साध्य का स्वरूप और मानवीय प्रकृति, दोनों ही यह बताते हैं कि त्रिविध साधना - मार्ग अपने समवेत रूप में ही नैतिक पूर्णता की प्राप्ति करा सकता है । यहाँ इम त्रिविध साधना पथ का मानवीय प्रकृति और नैतिक साध्य से क्या सम्बन्ध है इसे स्पष्ट कर लेना उपयुक्त होगा । मानवीय प्रकृति और त्रिविध साधना पथ - मानवीय चेतना के तीन कार्य हैं१. जानना; २. अनुभव करना और ३. संकल्प करना । हमारी चेतना का ज्ञानात्मक पक्ष न केवल जानना चाहता है, वरन् वह सत्य को ही जानना चाहता है । ज्ञानात्मक चेतना निरन्तर सत्य की खोज में रहती है । अतः जिस विधि से हमारी ज्ञानात्मक श्वेतना सत्य को उपलब्ध कर सके उसे हो सम्यक् ज्ञान कहा गया है । सम्यक् ज्ञान चेतना के ज्ञानात्मक पक्ष को सत्य की उपलब्धि की दिशा में ले जाता है । चेतना का दूसरा पक्ष अनुभूति के रूप में आनन्द की खोज करता है । सम्यग्दर्शन चेतना में राग-द्वेषात्मक जो तनाव हैं, उन्हें समाप्त कर उमे आनन्द प्रदान करता है । चेतना का तीसरा संकल्पनात्मक पक्ष शक्ति की उपलब्धि और कल्याण की क्रियान्वित चाहता है । सम्यक् चारित्र संकल्प को कल्याण के मार्ग में नियोजित कर शिव को उपलब्धि करता हैं। इस प्रकार सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चारित्र का यह त्रिविध साधना-पथ चेतना के तीनों पक्षों को सही दिशा में निर्देशित कर उनके वांछित लक्ष्य सत्, सुन्दर और शिव अथवा अनन्त ज्ञान, आनन्द और शक्ति की उपलब्धि कराता है। वस्तुतः जीवन के साध्य को उपलब्ध करा देना ही इस त्रिविध माधना पथ का कार्य है। जीवन का साध्य अनन्त एवं पूर्ण ज्ञान, अक्षय आनन्द और अनन्त शक्ति की उपलब्धि है, जिसे त्रिविध साधना - पथ के तीनों अंगों के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। चेतना के ज्ञानात्मक पक्ष को सम्यक्ज्ञान को दिशा में नियोजित कर ज्ञान की पूर्णता को, चेतना के भावात्मक पक्ष को सम्यग्दर्शन में नियोजित कर अक्षय आनन्द की और चेतना के संकल्पात्मक पक्ष को
SR No.010202
Book TitleJain Bauddh aur Gita ka Sadhna Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1982
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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