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जैन, बौख मोर गीता का साधना मार्ग
मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। जिम प्रकार निपुण चालक भी वायु या गति की क्रिया के अभाव में जहाज को इच्छिन किनारे पर नही पहुँचा मकता वैसे ही ज्ञानी आत्मा भी तप-संयम म्प मदाचरण के अभाव में मोक्ष प्राप्त नही कर सकता।' मात्र जान लेने से कार्य-मिद्धि नहीं होती । तैग्ना जानते हुए भी कोई कायचेष्टा नही करे तो डूब जाता हैं, वैमे ही शास्त्रों को जानते हुए भी जो धर्म का आचरण नहीं करता, वह डूब जाता है। जैमे चन्दन ढोने वाला चन्दन से लाभान्वित नहीं होता, मात्र भार-वाहक ही बना रहता है वैमे ही आचरण मे हीन ज्ञानी ज्ञान के भार का वाहक मात्र है, इससे उसे कोई लाभ नहीं होता । ज्ञान और क्रिया के पारस्परिक सम्बन्ध को लोक-प्रसिद्ध अंध-पंगु न्याय के आधार पर स्पष्ट करते हुए आचार्य लिम्वते है कि जैसे वन में दावानल लगने पर पंगु उसे देखते हुए भी गति के अभाव मे जल मरता है और अन्धा सम्यक् मार्ग न खोज पाने के कारण जल मरता है वैगे ही आचरणविहीन ज्ञान पंगु के समान है और ज्ञानचक्षु विहीन आचग्ण अन्धे के ममान है। आचरणविहीन ज्ञान और ज्ञान-विहीन आचरण दोनों निरर्थक है और संमार म्पी दावानल मे साधक को बचाने में असमर्थ हैं । जिस प्रकार एक चक्र मे रथ नही चलता, अकेला अन्धा अकेला पंगु इच्छित साध्य तक नहीं पहुंचतं, वैसे ही मात्र ज्ञान अथवा मात्र क्रिया से मुक्ति नहीं होती, वरन् दोनों के सहयोग से मुक्ति होती हैं। भगवतीमूत्र में ज्ञान और क्रिया में से किसी एक को स्वीकार करने की विचारणा को मिथ्या विचारणा कहा गया है। महावीर ने माधक की दृष्टि से ज्ञान और क्रिया के पारस्परिक सम्बन्ध की एक चतुर्भगी का कथन इसी संदर्भ में किया है
१. कुछ व्यक्ति जान गम्पन्न है, लेकिन चारित्र-सम्पन्न नहीं हैं । २. कुछ व्यक्ति चारित्र मम्पन्न है, लेकिन ज्ञान-सम्पन्न नही हैं । ३. कुछ व्यक्ति न ज्ञान सम्पन्न है, न चारित्र सम्पन्न है । ४. कुछ व्यक्ति ज्ञान सम्पन्न भी है और चारित्र-सम्पन्न भी हैं ।
महावीर ने इनमें मे सच्चा माधक उमे ही कहा जो ज्ञान और क्रिया, श्रुत और शील दोनों से सम्पन्न है। इमी को स्पष्ट करने के लिए एक निम्न रूपक भी दिया जाता है१. कुछ मुद्रायें ऐसी होती है जिनमें धातु भी खोटी है मुद्रांकन भी ठीक नहीं है । २. कुछ मुद्राएं ऐसी होती है जिनमे धातु तो गद्ध है लेकिन मुद्रांकन ठीक नहीं है। ३. कुछ मुद्राएँ ऐमी है जिनमे बातु अशुद्ध है लेकिन मुद्रांकन ठीक है । ४. कुछ मुद्राएँ ऐमी हैं जिनमे धातु भी शुद्ध है और मुद्रांकन भी ठीक है। १. आवश्यकनियुक्ति, ९५-९७
२. वही, ११५१-५४ ३. वही, १००
४. वही १०१-१०२ ५. भगवतीसूत्र ८।१०।४१