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अध्याय : ३ अविद्या (मिथ्यात्व)
३७-४६ मिथ्यात्व का अर्थ (३८); जैन दर्शन मे मिथ्यात्व के प्रकार-एकान्त (३८); विपरीत (३९.); वनयिक (३९), मशय (३०); अज्ञान (४०); मिथ्यात्व के २५ भेद (४०), बौद्ध दर्शन मे मिथ्यात्व के प्रकार (४१); गीता मे अज्ञान (८१); पाश्चात्य दर्शन में मिथ्यात्व का प्रत्यय-जातिगत मिथ्या धारणा, व्यक्तिगत मिथ्या विश्वाम, बाजारू मिथ्या विश्वास, रंगमंच की भ्रान्ति (४२), जैन दर्शन में अविद्या का स्वरूप (४२); बौद्धदर्शन में अविद्या का स्वरूप (४३); बौद्ध दर्शन को अविद्या की समीक्षा (४४); गीता एवं वंशान्त में विद्या का म्वम्प (४.), वेदान्त की माया की समीक्षा (४६), उपमह र (४६) । अध्याय : ४
सम्यग्दर्शन
४७-६९ सम्यक्त्व का अर्थ (४५); दर्शन का अर्थ (४८), सम्यग्दर्शन के विभिन्न अर्थ (०८), जैन आचार दर्शन में मम्यग्दर्शन का स्थान (५१); बौद्ध दर्शन में मम्यग्दर्शन का स्थान (५२); वैदिक परम्पग एव गीता में सम्यग्दर्शन (श्रद्धा) का स्थान (५३), जैनधर्म मे मम्यग्दर्शन का स्वरूप एवं सम्यग्दर्शन के दमभेद (५४-५५), मम्यक्त्व का विविध वर्गीकरण(अ) कारक गम्यकत्व, गेचक मम्यक्त्व, दीपक सम्यक्त्व (५५); (ब) औपशमिक सम्यक्त्व, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायोपशमिक मम्यक्त्व (५६); सम्यक्त्व का द्विविध वर्गीकरण-(अ) द्रव्य सम्यक्त्व और भाव सम्यक्त्व (५७), (घ) निश्चय सम्यक्त्व और व्यवहार मम्यक्त्व (५७), (म) निमर्गज सम्यक्त्व और अधिगमज सम्यक्त्व (५७), मम्यक्त्व के ५ अग-सम, सवेग, निर्वेद, अनुकम्पा, आस्तिक्य (५८), मम्यक्त्व के दूषण (अतिचार)-शका, आकाक्षा, विचिकित्मा, मिथ्या दृष्टियो की प्रामा, मिथ्या दृष्टियो का अति परिचय (५९), सम्यग्दर्शन के आठ दर्शनाचार-निश्शकता, निष्काक्षता, निविचिकित्सा, अमृढष्टि, उपवृहण, स्थिरीकरण, वात्सल्य, प्रभावना, (६०-६४), सम्यग्दर्शन को साधना के छह स्थान (६४), बौद्ध दर्शन में सम्यग्दर्शन का स्वरूप (६४); गीता मे श्रद्धा का स्वरूप एव वर्गीकरण (६६); उपमहार (६८)। अध्याय : ५ सम्यग्ज्ञान (ज्ञानयोग) ७०-८२ जैन नैतिक साधना में ज्ञान का स्थान (७०), बौद्ध-दर्शन में ज्ञान का स्थान (७१); गीता में ज्ञान का स्थान (७१); सम्यग्ज्ञान का स्वरूप (७१); ज्ञान