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के स्तर (७२); बौद्धिक ज्ञान (७३); आध्यात्मिक ज्ञान (७४); नैतिक जीवन का लक्ष्य आत्मज्ञान (७५); आत्मज्ञान की ममम्या (७६); आत्मज्ञान की प्राथमिक विधि भेदविज्ञान (७७); जैन दर्शन मे भेद विज्ञान (७८); बौद्ध-दर्शन में भेदाभ्यास (७८); गीता मे आत्म-अनात्म विवेक (भेद-विज्ञान) (८०); निष्कर्ष (८२)।
अध्याय : ६ सम्यक् चारित्र (शोल) ८३-९५ सम्यग्दर्शन मे सम्यक्चारित्र की ओर (८३); मम्यक्चारिय का स्वरूप (८४); चारित्र के दो रूप, (८५); निश्चय दृष्टि मे चारित्र (८५); व्यवहारचारित्र (८५); व्यवहारचारित्र के प्रकार (८६); चारित्र का चतुर्विध वर्गीकरण (८६); चारित्र का पंचविध वर्गीकरण-मामायिक चारित्र, छेदोपस्थापनीयचारित्र, परिहारविशुद्धि चारित्र, मूटममम्पगय चारित्र, यथाख्यात चारित्र (८७); चारित्र का विविध वर्गीकरण (८७); बौद्ध दर्शन और मम्य
चारित्र (८७); शील का अर्थ (८८); शील के प्रकार--द्विविधवर्गीकरण (८८); त्रिविध वर्गीकरण (८९); शील का प्रत्युपस्थान (९०); शील का पदस्थान (९०); शोल के गुण (९०); अष्टाग माधनापथ और शील (९१); वैदिक परम्परा मे शील या मदाचार (९२); गील (१२); मामयाचारिक (९२); शिष्टाचार (९३): सदाचार (९३); उपमंहार (१.४) ।
अध्याय : ७ सम्यक तप तथा योग-मार्ग (९६-११०) नैतिक जीवन एवं तप (९६); जैन माधना-पद्धति मे तप का म्यान (९८); हिन्दू साधना-पद्धति में तप का स्थान (०.९.); बौद्ध मानना-पद्धति में तप का स्थान (९०); तप के स्वरूप का विकास (१०१); जैन-मानना में तप का प्रयोजन (१०२); वैदिक माधना में तप का प्रयाजन (१०३); बौद्ध माधना में तप का प्रयोजन (१०३); जैन साधना में तप का वर्गीकरण (१०४); शारीरिक या बाह्य तप के भेद-अनगन, ऊनोदरी, रम परित्याग, भिक्षाचर्या, कायक्लेश, संलीनता (१०४-१०५); आध्यान्तर तप के भेदप्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्मर्ग, ध्यान-धर्मध्यान, शुक्रध्यान, (१०५-१०८); गीता में तप का वर्गीकरण (१०९); बौद्ध माधना में तप का वर्गीकरण (११०); अष्टांग योग और जैनदर्शन (११२); तप का मामान्य स्वरूप : एक मूल्यांकन (११४) ।