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विषय-सूची
अध्याय : १
समत्व योग
१-२०
नैतिक साधना का केन्द्रीयतत्व समत्व-योग (१); जैन-आचार दर्शन मे ममत्व-योग (३); जैन दर्शन में विषमता (दुख) का कारण (४), जैन धर्म मे समत्व-योग का महत्व (५), जैन 'गर्म ग ममत्व-गोग ा गर्थ (६), जैन आगमो मे ममत्व-योग का निर्देश (७), बोद्ध आचार-दगन में गम-व-गोग (७); गीता के आचार दर्शन मे ममत्व-योग (९); गीता में गमन्व सा अर्थ (१४); गीता में ममत्वयोग की शिक्षा (१४); समन्वयोग का व्यवहार पक्ष (१६); समत्वयोग का व्यवहार पक्ष और जैन :ष्टि (१९), ममत्वयोग के निष्ठासूर (१९); ममत्वयोग के क्रियान्वयन रे चार सत्र-वृत्ति में अनामक्ति (१९); विचार में अनाग्रह (२०); वैयक्तिक जी (न में नगग्र (२०); मामाजिक आचरण मे आँ'मा (०) ।
अध्याय : २ त्रिविध साधना-मार्ग २१-३६
विविध साधना-मार्ग ही क्यो ? १२१); बौद्ध दर्शन में विविध माधनामार्ग (२१); गीता का त्रिविध माधनामार्ग (२२), पाश्चात्य चिन्तन में विविध माधनापथ (२२), माधन-त्रय का परम्पर म बन्ध (२३), मम्यग्दर्शन
और सम्यग्ज्ञान का पर्वापर मम्बन्ध (२३); बौद्ध विचारणा म ज्ञान और श्रद्धा का सम्बन्ध । ५), गीता म श्रद्धा और ज्ञान का सम्बन्ध (२ ); सम्यग्दर्शन और मम्यकचारित्र का पूर्वापर सम्बन्ध (२७), बौद्धदर्शन और नीता का दृष्टिकोण (२८); सम्यग्जान और सम्यक्चारित्र की पूर्वापरता (२८); माधन-त्रय में ज्ञान का स्थान (२९), मम्यग्दगन, मम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र का पूर्वापर मम्बन्ध भी एकातिक नही (१०); ज्ञान और क्रिया के महयोग से मुक्ति (३१), वैदिक-परम्पग मे ज्ञान और क्रिया के ममन्वय मे मुक्ति (३३); बौद्ध-विचारणा में प्रज्ञा और गील का मम्बन्ध (३३); तुलनात्मक दृष्टि से विचार (३४); मानवीय प्रकृति और त्रिविध साधना-पथ (३५)।