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श्रमण-धर्म : १७३
आहार की अदला-बदली करना, ११ अभिहुत-साधु के लिए आहार दूर से लाना, १२ उद्भिन्न-साधु के लिए वंद बरतन का मुंह तोड कर घी आदि देना, १३. मालापहृत-ऊंचे स्थान पर चढकर आहार उतार कर देना, १४. आच्छेद्य-किसी से छीन कर आहार देना, १५. अनिसृष्ट-साझे की वस्तु साझी की अनुमति के विना देना, १६ अध्यवपूरक-अपने लिए बनाये जाने वाले भोजन मे साधु के लिए थोडी मात्रा बढ़ा लेना।
गवेषणा के उत्पादन-दोष-निम्नलिखित १६ दोष आहार की गवेषणा के उत्पादन-दोष हैं १ धात्री-धाय की भाति गृहस्थ के वालको की किसी प्रकार की सेवा करके आहार लेना, २. दूती-दूत के समान संदेश पहुंचाकर आहार लेना, ३ निमित्त शुभाशुभ फल वताकर आहार लेना, ४. आजीव-अपनी जाति, कुल आदि बतलाकर आहार लेना, ५. वनीपक--भिखमगे की तरह दीनता दिखा कर आहार लेना, ६ चिकित्सा-औषधि आदि का प्रयोग वताकर आहार लेना, ७. क्रोध-गुस्सा करके अथवा शापादि का भय दिखाकर आहार लेना, ८. मान-अभिमानपूर्वक आहार लेना, ९ माया--कपटपूर्वक आहार लेना, १०. लोभ-लालचवश आहार लेना, ११. पूर्वपश्चात्संस्तवआहार लेने के पहले अथवा वाद मे दाता की प्रशसा करना, १२. विद्या--जप आदि से सिद्ध होने वाली विद्या का प्रयोग करके आहार लेना, १३ मन्त्र-मत्र-तत्र का प्रयोग करके आहार लेना, १४ चूर्ण-चूर्ण आदि ( वशीकरण ) का प्रयोग करके आहार लेना, १५. योग-योगविद्या का प्रदर्शन करके