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१७२ : जैन आचार
आहार-सम्बन्धी दोप.
पिण्डनियुक्ति आदि मे पाहारसम्बन्धी ४७ दोषो का उल्लेख है। इनमे से आधाकर्म आदि १६ दोष उद्गम-दोष तथा धात्री आदि १६ दोष उत्पादन-दोप कहे जाते हैं। ये ३२ दोप गवेपणा से सम्बन्धित है। शकित आदि १० दोप ग्रहणपणाविपयक है । सयोजना आदि शेप ५ दोपों का सम्बन्ध ग्रासैपणा से है। आहार की खोज करते समय गृहस्थ के निमित्त से लगने वाले दोप उद्गम-दोष तथा साधु की खुद की ओर से लगने वाले दोष उत्पादन-दोप कहलाते हैं । आहार लेते समय गृहस्थ तथा साधु दोनो के निमित्त से लगने वाले दोष ग्रहणैषणा के दोप कहलाते हैं । आहार खाते समय साधु की ही ओर से लगने वाले दोष ग्रासैषणा के दोष कहलाते हैं। ___गवेषणा के उद्गम-दोष-निम्नोक्त १६ दोष आहार की गवेषणा के उद्गम-दोष हैं : १. आधाकर्म-विशेष साधु के उद्देश्य से आहार बनाना, २ औद्देशिक-सामान्य भिक्षुओ के उद्देश्य से आहार बनाना, ३ पूतिकर्म-शुद्ध आहार को अशुद्ध आहार से मिश्रित करना, ४ मिश्रजात-अपने लिए व साधु के लिए मिलाकर आहार बनाना, ५ स्थापना-साधु के लिए कोई खाद्य पदार्थ अलग रख देना, ६. प्राभृतिका-साधु के निमित्त से अपना भोजन का कार्यक्रम बदल देना, ७. प्रादुष्करण-अन्धकार दूर करने के लिए दीपक आदि का प्रयोग कर आहार देना, ८ क्रीत -साधु के लिए आहार खरीद कर लाना, ९. प्रामित्य-साधु के लिए आहार उधार लाना, १०. परिवर्तित-साधु के लिए