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श्रमण-धर्म : १४९
मनोविकारो का नियन्त्रण
इससे तृष्णा, लोभ, अशान्ति आदि होता है । तन, मन व वचन अशुभ प्रवृत्तियो से रुककर शुभ प्रवृत्तियों में प्रवृत्त होते हैं । भगवती ( व्याख्याप्रज्ञप्ति ) सूत्र के सातवे शतक के दूसरे उद्देशक मे प्रत्याख्यान के विविध भेदो का वर्णन | इनमे अनागत आदि दस भेद प्रत्याख्यान का स्वरूप समझने के लिए विशेष उपयोगी हैं। इन दस प्रकार के प्रत्याख्यानो के नाम ये हैं : १ अनागत, २ अतिक्रात, ३ कोटियुक्त, ४ नियन्त्रित, ५ सागार, ६. अनागार, ७. कृतपरिमाण, ८. निरवशेष, ९ साकेतिक, १०. कालिक, । पर्व आदि विशिष्ट अवसर पर किया जाने वाला प्रत्याख्यान अर्थात् त्यागविशेषतपविशेष कारणवशात् पर्व आदि से पहले ही कर लेना अनागत प्रत्याख्यान है । पर्व आदि के व्यतीत हो जाने पर तपविशेष की आराधना करना अतिक्रांत प्रत्याख्यान है । एक तप के समाप्त होते ही दूसरा तप प्रारम्भ कर देना कोटियुक्त प्रत्याख्यान है । रोग आदि की बाधा आने पर भी पूर्वसंकल्पित त्याग निश्चित समय पर करना एव उसे दृढतापूर्वक पूर्ण करना नियन्त्रित प्रत्याख्यान है । त्याग करते समय आगार अर्थात् अपवादविशेष की छूट रख लेना सागार प्रत्याख्यान है । आगार रखे विना त्याग करना अनागार प्रत्याख्यान है । भोज्य पदार्थ आदि को संख्या अथवा मात्रा का निर्धारण करना कृतपरिमाण प्रत्याख्यान है । अशनादि चतुर्विध अर्थात् सम्पूर्ण आहार का त्याग करना निरवशेष प्रत्याख्यान है । इसमे पानी का त्याग भी शामिल है । किसी प्रकार के सकेत के साथ किया जानेवाला त्याग