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जैन आचार
अर्थात् अपने निमित्त से बने हए भोजन का परित्याग नही करता । इस प्रतिमा का नाम प्रेष्यपरित्यागप्रतिमा है क्योकि इसमे आरभ के निमित्त किसी को कही भेजने-भिजवाने का त्याग होता है। आरभवर्धक परिग्रह को त्याग होने के कारण इसे परिग्रहत्यागप्रतिमा भी कहते हैं।
दसवी प्रतिमा मे उद्दिष्ट भक्त का भी त्याग कर दिया जाता है। इस प्रतिमा मे स्थित श्रमणोपासक उस्तरे से मुण्डित होता हुआ शिखा धारण करता है अर्थात् सिर को एकदम साफ न कराता हुआ चोटी जितने बाल सिर पर रखता है। इससे यह मालूम होता है कि गृहस्थ के सिर पर चोटी रखने का रूढ प्रथा जैन परम्परा मे भी मान्य रही है। दसवी प्रतिमा धारण करने वाले गृहस्थ को जब कोई एक बार अथवा अनेक बार, बुलाता है या एक अथवा अनेक प्रश्न पूछता है तब वह दो ही) उत्तर देता है। जानने पर कहता है कि मैं यह जानता हूँ। न जानने की स्थिति मे कहता है कि मुझे यह मालूम नही । चूंकि इस प्रतिमा मे उद्दिष्ट भक्त का त्याग अभिप्रेत होता है अत. इसका नाम उद्दिष्टभक्तत्यागप्रतिमा है। ___ ग्यारहवी प्रतिमा का नाम श्रमणभूतप्रतिमा है। श्रमणभूत का अर्थ होता है श्रमण के सदृश । जो गृहस्थ होते हुए भी साध के समान आचरण करता है अर्थात् श्रावक होते हुए भी श्रा के समान क्रिया करता है वह श्रमणभूत कहलाता है। श्री भूतप्रतिमाप्रतिपन्न श्रमणोपासक बालों का उस्तरे से मुण्डन वाता है अथवा हाथ से लुचन करता है। इस प्रतिमा मे/
समुण्डमघोप