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श्रावकाचार . १२७
चतुर्थ प्रतिमा मे स्थित श्रावक चतुर्दशी आदि के दिनो मे प्रतिपूर्ण पौषधव्रत का सम्यक्तया पालन करता है। इसका नाम पौषधप्रतिमा है।
पाचवी प्रतिमा का नाम है नियमप्रतिमा। इसमे स्थित श्रमणोपासक निम्नोक्त पाँच नियमो का विशेष रूप से पालन करता है : १ स्नान नही करना, २. रात्रिभोजन नही करना, ३. धोती की लाग नहीं लगाना, ४ दिन मे ब्रह्मचारी रहना एव रात्रि मे मैथुन की मर्यादा करना, ५ एकरात्रिकी प्रतिमा का पालन करना अर्थात् महीने मे कम-से-कम एक रात कायोत्सर्ग अवस्था मे ध्यानपूर्वक व्यतीत करना ।
छठी प्रतिमा का नाम ब्रह्मचर्यप्रतिमा है क्योकि इसमे श्रावक दिन की भांति रात्रि मे भो ब्रह्मचर्य का पालन करता है। इस प्रतिमा मे सर्व प्रकार के सचित्त आहार का परित्याग नही होता।
सातवी प्रतिमा मे सभी प्रकार के सचित्त आहार का परित्याग कर दिया जाता है किन्तु प्रारम्भ (कृषि, व्यापार आदि मे होने वाली अल्प हिंसा) का त्याग नही किया जाता। इस प्रतिमा का नाम है सचित्तत्यागप्रतिमा ।
आठवी प्रतिमा का नाम आरम्भत्यागप्रतिमा है। इसमे उपासक स्वय तो आरभ का त्याग कर देता है किन्तु दूसरो से आरभ करवाने का परित्याग नही कर सकता।
नवी प्रतिमा धारण करनेवाला श्रावक आरभ करवाने का भी त्याग कर देता है । इस अवस्था मे वह उद्दिष्ट भक्त