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श्रावकाचार : ११५
निम्नलिखित पाँच अतिचारो से सामायिक व्रत दूषित होता है : १. मनोदुष्प्रणिधान, २ वागदुष्प्रणिधान, ३. कायदुष्प्रणिधान, ४. स्मृत्यकरण, ५ अनवस्थितकरण । मनसे सावध भावों का अनुचिन्तन करना मनोदुष्प्रणिधान है। वाणी से सावध वचन बोलना वाग्दुष्प्रणिधान है । गरीर से सावध क्रिया करना कायदुष्प्रणिधान है। सामायिक की स्मृति न रखना अर्थात् सामायिक करनी है या नही, सामायिक की है या नही, सामायिक पूरी हुई है या नही-इत्यादि विषयक स्मृति न होना स्मृत्यकरण है। यथावस्थित सामायिक न करना, समय पूरा हुए विना ही सामायिक पूरी कर लेना अनवस्थितकरण है।
२ देशात्रकाशिक-दिशापरिमाण व्रत मे जीवनभर के लिए मर्यादित दिशाओ के परिमाण मे कुछ घंटो अथवा दिनो के लिए विशेष मर्यादा निश्चित करना अर्थात् विशेष कमी करना देशावकाशिक व्रत है। देश अर्थात् क्षेत्र का एक अश और अवकाश अर्थात् स्थान । चूंकि इस व्रत मे जीवनपर्यन्त के लिए गृहीत दिशापरिमाण अर्थात् क्षेत्रमर्यादा के एक अशरूप स्थान की कुछ समय के लिए विशेष सीमा निर्धारित की जाती है इसलिए इसे देशावकाशिक व्रत कहते हैं । यह व्रत क्षेत्रमर्यादा को सकुचित करने के साथ ही उपलक्षण से उपभोग-परिभोगादिरूप अन्य मर्यादाओ को भी सकुचित करता है। मर्यादित क्षेत्र से बाहर न जाना, बाहर से किसी को न बुलाना, न बाहर किसी को भेजना और न बाहर से कोई वस्तु मंगवाना, बाहर क्रय-विक्रय न करना आदि प्रस्तुत व्रत के लक्षण हैं।