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श्रावकाचार : ११३
वचन बोलना या सुनना कन्दर्प है । विकारवर्धक चेष्टाएं करना या देखना कौत्कुच्य है । असम्बद्ध एव अनावश्यक वचन बोलना मौखर्य है । जिन उपकरणो के संयोग से हिंसा की सभावना बढ जाती हो उन्हें संयुक्त कर रखना सयुक्ताधिकरण है । उदाहरण के लिए बन्दूक के साथ कारतूस धनुष के साथ तीर सयुक्त कर रखना । आवश्यकता से अधिक उपभोग एव परिभोग की सामग्री संग्रह करना उपभोगपरिभोगातिरिक्त है । ये सब अतिचार निरर्थक हिसा का पोषण करने वाले हैं अत श्रमणोपासक को इनसे बचना चाहिये ।
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शक्षाव्रत :
शिक्षा का अर्थ है अभ्यास। जिस प्रकार विद्यार्थी पुन - पुन. विद्या का अभ्यास करता है उसी प्रकार श्रावक को कुछ व्रतो का पुन - पुन. अभ्यास करना पडता है । इसी अभ्यास के कारण इन व्रतों को शिक्षाव्रत कहा गया है । अणुव्रत एव गुणव्रत एक ही वार ग्रहण किये जाते है जवकि शिक्षाव्रत वार वार ग्रहण किये जाते हैं । दूसरे शब्दो मे अणुव्रत एव गुणव्रत जीवनभर के लिये होते हैं जबकि शिक्षाव्रत अमुक समय के लिए ही होते हैं । शिक्षाव्रत चार हैं : १. सामायिक व्रत, २. देशावकाशिक व्रत, ३. पौषधोपवास व्रत, ४ अतिथिसविभाग व्रत ।
१ सामायिक -- ' सामायिक' पद के मूल मे 'समाय' शब्द है । समाय शब्द 'सम' और 'आय' के सयोग से बनता है । सम का अर्थ है समता अथवा समभाव और प्राय का अर्थ है लाभ अथवा प्राप्ति । इन दोनो अर्थो को मिलाने से समाय का अर्थ होता है
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