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श्रावकाचार ११९
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स्थूल हिंसा से भी भारी हो जाती है । कौनसा व्यवसाय श्रावक के करने योग्य है और कौनसा करने योग्य नही, इसका निर्णय मुख्यतः इन दो दृष्टियो से ही करना चाहिए |
३ अनर्थदण्ड - विरमण -- अपने अथवा अपने कुटुम्ब के जीवननिर्वाह के निमित्त होने वाले अनिवार्य सावद्य अर्थात् हिसापूर्ण व्यापार-व्यवसाय के अतिरिक्त समस्त पापपूर्ण प्रवृत्तियो से निवृत्त होना अनर्थदण्ड - विरमण व्रत है । इस गुणव्रत से प्रधानतया अहिसा एवं अपरिग्रह का पोषण होता है । अनर्थदण्ड - विरमण व्रतधारी श्रावक निरर्थक किसी की हिसा नहीं करता और न निरर्थक वस्तु का संग्रह ही करता है क्योकि इस प्रकार के संग्रह से हिंसा को प्रोत्साहन मिलता है । अनर्थदण्ड अर्थात् निरथंक पापपूर्ण प्रवृत्तियाँ चार प्रकार की बताई गई हैं : अपध्यानाचरण, प्रमादाचरण, हिंसाप्रदान और पापकर्मोपदेश । अपध्यान अर्थात् कुध्यान । ध्यान के चार प्रकार हैं : आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान व शुक्लध्यान । इनमें से प्रथम दो ध्यान अशुभ ध्यान - कुध्यान तथा वाद के दो ध्यान शुभ ध्यानसुध्यान | आर्तध्यान चार प्रकार का है : इष्टवियोग, अनिष्टसयोग, रोगचिन्ता और निदान | प्रिय वस्तु अथवा व्यक्ति का वियोग होने पर उसके संयोग के लिये शोकाकुल रहना इष्टवियोगआर्तध्यान है । अप्रिय वस्तु अथवा व्यक्ति का सयोग होने पर उसके वियोग के लिए व्याकुल रहना अनिष्टसंयोग-आर्तध्यान है । शारीरिक अथवा मानसिक पीड़ा दूर करने की व्याकुलता को रोगचिन्ता - आर्तध्यान कहते हैं । अप्राप्त विषयों