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श्रावकाचार : १०३
में समावेश किया है : १. क्षेत्र, २. वस्तु, ३. हिरण्य, ४. सुवर्ण, ५. धन, ६. धान्य, ७. द्विपद, ८. चतुष्पद, ९. कुप्य । क्षेत्र अर्थात् खेत, बगीचा, चारागाह आदि । वस्तु अर्थात् मकान, दुकान गोदाम आदि । हिरण्य अर्थात् चादी के वर्तन, आभूषण तथा अन्य उपकरण । सुवर्ण अर्थात् सोने के वर्तन, आभूपण तथा अन्य उपकरण । रुपया-पैसा, रत्न-जवाहरात, क्रय-विक्रयरूप सोनाचाँदी, कल-कारखाने आदि धन के अन्तर्गत हैं। गेहूँ, जौ, चावल, उड़द, मूंग, तिल, अलसी, मटर आदि धान्य के अन्तर्गत है। दो पाँव वाले प्राणी यथा--स्त्री, पुरुष, तोता, मैना, कबूतर, मयूर आदि द्विपद मे समाविष्ट होते हैं। चार पैर वाले प्राणी यथा---गाय वैल, भैंस, हाथी, घोड़ा, भेड, बकरो आदि चतुष्पद मे समाविष्ट होते हैं। सोने व चांदी की वस्तुओ के अतिरिक्त शेष समस्त वस्तुओ का समावेश कुप्य मे होता है । ये वस्तुएँ मुख्यत. लोहा, तांबा, पीतल, कांसा आदि धातुओ की बनी हुई होती हैं। जो वस्तुएं अपने उपयोग के लिए नही अपितु व्यापार के लिए होती हैं उनका समावेश धन मे किया जाता है। गाडी, मोटर, साइकल बग्गी, तांगा, रथ, ठेला, ट्रक आदि वाहन स्वरूप तथा उपयोग की विविधता की दृष्टि से द्विपद, चतुष्पद, धन, कुप्य आदि मे समाविष्ट होते हैं।।
श्रमण के समान ममत्व-मूछा-गृद्धि-संग्रहवृत्ति का सर्वथा त्याग करना श्रावक के लिए शक्य नही। वह अशत. परिग्रहवृत्ति से मुक्त होता है अर्थात् देशत. परिग्रह का त्याग करता है। यह त्याग उसके इच्छा-परिमाण अर्थात् परिग्रह-परिमाण से फलित