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श्रावकाचार: ९१
दूषित नही हो जाती । इस प्रकार की प्रवृत्ति करने वाला श्रावक वधदोष का भागी नही होता। स्थूल अहिंसा का तीसरा अतिचार छविच्छेद है। किसी भी प्राणी के अगोपांग काटना छविच्छेद कहलाता है। चूंकि छविच्छेद से प्राणी को पीडा होती है अत वह त्याज्य है । छविच्छेद की तरह वृत्तिच्छेद भी दोषयुक्त है। किसी की वृत्ति अर्थात् आजीविका का सर्वथा छेद करना याने रोजी छीन लेना तो वधरूप होने के कारण दोषयुक्त है ही, उचित पारिश्रमिक मे न्यूनता करना, कम वेतन देना, कम मजदूरी देना, अनुचित रूप से वेतन या मजदूरी काट लेना, नौकर या मजदूर कोछुट्टी आदि की पूरी सुविधाएं न देना आदि क्रियाएं भी छविच्छेद की ही भाँति दोषयुक्त हैं। चौथा अतिचार अतिभार है । बैल, ऊंट, अश्व आदि पशुओ पर अथवा मजदूर, नौकर आदि मनुष्यो पर उनकी शक्ति के अतिरिक्त वोझ लादना अतिभार कहलाता है। शक्ति एवं समय होने पर भी अपना काम खुद न कर दूसरो से करवाना अथवा किसी से शक्ति से अधिक काम लेना भी अतिभार ही है। पाचवा अतिचार अन्नपाननिरोध है। किसी के खान-पान मे रुकावट डालने वाला इस अतिचार का भागी होता है। नौकर आदि को समय पर खाना न देना, पूरा खाना न देना, ठीक खाना न देना, अपने पास सग्रह होने पर भी आवश्यकता के समय किसी की सहायता न करना, अपने अधीनस्थ पशुओ एवं मनुष्यो को पर्याप्त खाना आदि न देना अन्नपाननिरोध नही है तो क्या है ? अहिंसा की आराधना करने वाले श्रावक को इन सब अतिचारो से दूर रहना चाहिए-इस प्रकार के अनेक दोपो से