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९२ • जैन आचार
बचना चाहिए |
२ स्थूल मृपावाद - विरमण - जिस प्रकार श्रमणोपासक के लिए स्थूल प्राणातिपात अर्थात् हिंसा से वचना आवश्यक है उसी प्रकार उसके लिए स्थूल मृपावाद अर्थात् झूठ से बचना भी जरूरी है । जिस प्रकार हिंसा न करना प्राणातिपात विरमण व्रत का निपेधात्मक पक्ष है तथा रक्षा, अनुकम्पा, परोपकार आदि करना अहिंसा का विधेयात्मक रूप है उसी प्रकार असत्य वचन न बोलना मृपावाद - विरमण व्रत का निपेधात्मक पक्ष है तथा सत्य वचन बोलना इस व्रत का विधेयात्मक रूप है । इससे व्यक्ति को सत्यनिष्ठ होने की शिक्षा मिलती है । उसके जीवन मे सचाई व ईमानदारी का विकास होता है । अहिंसा की आराधना के लिए सत्य की आराधना अनिवार्य है । झूठा व्यक्ति सही अर्थ मे अहिंसक नही हो सकता । सच्चा अहिंसक कभी असत्य आचरण नही कर सकता । सत्य और अहिंसा का इतना अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध है कि एक के अभाव मे दूसरे की आराधना अशक्य है । ये दोनो परस्पर पूरक तथा अन्योन्याश्रित है | अहिंसा यथार्थता को सुरूप प्रदान करती है जबकि यथार्थता अहिंसा की सुरक्षा करती है । अहिंसा के विना सत्य नग्न अथवा कुरूप होता है जवकी सत्यरहित अहिंसा मरणोन्मुख अथवा अरक्षित होती है । जोवित रहते हुए मनुष्य हिंसा का पूर्ण त्याग नही कर सकता । खान-पान, हलन चलन, श्वासोच्छ्वास आदि मे होने वाली सूक्ष्म हिंसा को मानव दूर नही कर सकता । असत्य के लिए ऐसा नही कहा जा सकता । मनुष्य असत्य को पूर्णरूप से