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________________ . . संक्षिप्त इतिहास] ५. भ० जयकीर्ति कृत पार्श्व भवान्तर के छंद । ६ भद्रबाहु रास के अन्तर्गत 'चन्द्रगुप्त के सोलह स्वन'। 'चूनड़ी' ग्रन्थ के कर्ता माथुरसंघीय भट्ठारक बालचन्द्र के शिष्य भ० विनयचन्द्र हैं, जिन्होंने उसे गिरिपुर में रहते हुए अजय नरेश के राजविहार में बैठकर रचा था। इसमें जैनधर्म और संघ सम्बन्धी अनेक चर्चाओं का सांकेतिक रूप में संग्रह किया गया है, जो एक स्मृतिपट का काम देती है। इसीलिये उस पर संस्कृतभाषा में एक विस्तृत टीका भी बनाई गई है। 'चूनड़ी' एक प्रकार की रंगीन ओढ़नी या दुपट्टे को कहते हैं, जिसे रंगरेज या छीपी रंग-बिरंगी बूटें डाल और बेल बनाकर रंगते हैं। चूनड़ी का दूसरा नाम चूर्णी भी है जिसका अर्थ होता है बिखरे हुए प्रकीर्णक विषयों का लेखन अथवा चित्रण । ग्रन्थकार ने भोली महिला द्वारा की गई पति से ऐसी चूनड़ी के लिखाने-छपाने की प्रार्थना को हृदयस्थ करके जिसे ओढ़कर जिनशासन में विचक्षणता प्राप्त होवे, इस ग्रन्थ की रचना की है, इसके प्रारंभिक पद्यों को पढ़िये"विणएँ वंदिवि पंचगुरु, मोहमहातम-तोडन-दिणयर । णाह लिहावहि चूनडिय, मुखउ प-भणइ पिउ जोडिवि कर ॥ ध्रुवकं । पणवउ कोमल-कुवलय-गयणी, (अमिय-गम अण-सिव-यर-वयणी।) प-सरिवि सारद-जोण्ह जिम, जा अंधारउ सयल विणासह ॥ सा महु णिवसउ माणसहि, हंसवधू जिम देवि सरासह ॥ हीरा-दंत-पंति-पयडंती; गोरउ पिउ बोलइ विहसंती । सुंदर जाइ सु चेहहरि; महु दय किजउ सुहय सुलक्षण ।। लइ छिपावहि चूनडिय; हउ जिण सासणि सुद्द वियवखण ॥"
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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