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________________ [हिन्दी जैन साहित्य का "जैसे मनुष्य गुण संपत्ति से शोभा पाता है, कार्य का आरंभ उसकी समाप्ति पर अच्छा लगता है और सुभट अपने अच्छे पौरुष से शोभा को प्राप्त होता है, वैसे वर-पुरुष धवलाक्षी अच्छी बहू को पाकर शोभा पाता है। सौन्दर्यलक्ष्मी को पाकर कोई इतरा न जावे, इसलिए कविवर उसे सचेत करने के लिए ही मानो कहते हैं - "णियकतिहे ससि-बिंबु वि ढलइ , लायण्णु ण मणुयह किं गलइ ।" जब चन्द्रमा की कान्ति ढल जाती है, तब भला मनुष्य का लावण्य क्यों न ढलेगा? युद्ध और पौरुष कहाँ उपादेय हो सकते हैं, यह भी जरा इन महाकवि के मुख से सुनिये - "रणु चंगउ दीणपरिग्गहेण , सयंगत्तणु सजनगुणगहेण । पोरिसु सरणाइयरक्खणेण , दुक्खु वि चंगउ सुत कएण ॥" दीनजनों की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ना अच्छा है, सौजन्य सज्जन पुरुष के गुणग्रहण करने में है, पौरुष शरणागत की रक्षा करने से प्रकट होता है और अच्छा तप तपने में दुःख सहना ठीक है। ___पुष्पदन्त के अतिरिक्त अपभ्रंशभाषा साहित्य में उस समय कवि श्रीचन्द्रमुनि का 'कथाकोष' मुनि रामसिंहजी का 'दोहा पाहुड़' और मुनि योगचन्द्र का ‘परमात्मप्रकाश' अपने अपने विषय की बेजोड़ रचनायें हैं। इन कृतियों की रचनाशैली का परिचय पहले कराया जा चुका है। 'कथाकोष' साधारण जनता को छोटी-छोटी कथाओं के द्वारा सुन्दर धर्मशिक्षा प्रदान करता
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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