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________________ [हिन्दी बैन साहित्य का कप्पदुमच्छेय-पयणियषियारम्मि , ससिबिंब-रविबिंब-धत्थंधयारम्मि।" किस प्रकार आकर्षक शब्दों में भगवान ऋषभदेव के गर्भावतरण समय का वर्णन कवि ने किया है। आगे देखिये, कविवर ने किस खूबी से निम्नलिखित पद्य में सब ही लघु अक्षर और लघु मात्राओं का कितना सुन्दर गुम्फन किया है"वसहकरह-खरबरबलहयभरु, हरिखुरदलिय मलियवणतणतरु । मयगल-मयजल-पसमिय-रयमधु, दसदिसि मिलिय मणुय कयकलयलु । कसझसमुसल-कुलिस-सरकरयलु, जणवय पयभर पणविय महियलु । असिवर-सलिल-पयह-धुय-परिहवु, सतिलय-विलय-वलय-खणखण खु।" भरत चक्रवर्ती दिग्विजय को जा रहे हैं। उनकी चतुरंगिणी सेना के चलने से जो स्थिति हुई, देखिए, कवि ने उसका चित्रण कितनी सुंदरता से किया है। इसी प्रकार पुष्पदन्त का अर्थालङ्कार भी अद्वितीय है। उनकी सूक्तियाँ सुंदर और मार्मिक है। देखिए, कवि ने 'धर्म' का कितना समुदार स्वरूप निर्दिष्ट किया है"पुच्छियउ धम्मु जइवज्जरइ, जो सयलहं जीवह दय करइ । जो अलियपयं पणु परिहरइ, जो सब सो रइ करइ ॥" यति महाराज से भक्त ने पूछा-'धर्म क्या है ? उत्तर में वह बोले-'धर्म वही है जिसमें सब जीवों पर दया की जाय और अलीक वचन का परिहार करके जहाँ सुंदर सत्यसम्भाषण में आनन्द मनाया जाय ।' "वजइ अदत्तु णियपियरवणु, जो प घिवह परकलते णयणु । जो परहणु तिणसमाणु गणइ, जो गुणवंतउ भत्तिए थुणइ ॥"
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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