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________________ Y4 [हिन्दी जैन साहित्य का है। उनमें अधिकांश चरित्र-प्रन्थ हैं। वे किसी जैन महापुरुष की आत्मकथा को चित्रित करके मनुष्य को समुदार नीति और विश्वोपकारी धर्म की शिक्षा प्रदान करते हैं। उनका आधार भूतकालीन चरित्र-चित्रण है। उनके द्वारा जैन कविगण समय की प्रगति को प्रोत्साहन देते हैं और भारतीय इतिहास के गौरव को जागृत करते हैं। उदाहरणतः 'जम्बूस्वामीरासा' को लीजिये। जम्बुस्वामी भगवान महावीर के समकालीन थे। वह केवल ज्ञानियों में अन्तिम थे। गृहस्थावस्था में वह अपने बुद्धिकौशल और वीरत्व के लिए प्रसिद्ध थे । सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार के आज्ञानुसार उन्होंने मगध साम्राज्य के पर्वतीय शत्रु को परास्त करके गौरव प्राप्त किया था। अन्त में भ० महावीर के संघ में दीक्षित होकर उन्होंने तप तपा और मुक्त हुए। इस चरित्र को वर्णित करते हुए कवि सब ही रसों का प्रतिपादन करता है और ऐतिहासिक वार्ता को गाथाबद्ध बना देता है । साथ ही वह जनता के समक्ष धार्मिक श्रद्धा का सुदृढ़ और सौम्य दृष्टान्त भी उपस्थित करता है। इस प्रकार जैन-रासा-साहित्य वीरगाथा की कोटि में तो आता ही है; परंतु वह धर्म और इतिहास की भी गाथा है। आदिकाल की वह विशिष्ट रचना है। पहले यह लिखा जा चुका है कि आदिकाल से ही हिन्दी जैन-साहित्य में (१) अपभ्रंश-भाषा (प्राचीन देशी ) और ( २) देशी (पुरानी हिन्दी ) भाषा में दो प्रकार की रचनायें रची जाती थीं। अपभ्रंश-भाषा की पुस्तकें इस काल में अनेक रची गई, जिनमें से कुछ का उल्लेख प्रसंगवश पहले किया जा चुका है। वैसे इस काल के अपभ्रंश काव्य-जगत् में महाकवि पुष्पदन्त
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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