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[हिन्दी वैन साहित्य का शान्ति भाग हो गई थी। विद्वान् निश्चिन्त होकर सरस्वती देवी की आराधना करने में स्वाधीन नहीं थे। वणिक् निर्विघ्न व्यापार करने और देश को समृद्धिशाली बनाने के लिए तरसते थे । उनको विश्वास न था कि जहाँ वह जमे हैं, वहाँ स्थायी रूप से बने रहेंगे। कदाचित् प्रबल शत्रु का आक्रमण हुआ तो उन्हें रक्षा के लिए अन्यत्र चला जाना पड़ता था। कविवर आशाधर जी और महाकवि बनारसीदास जी के जीवनचरित्र इसके उदाहरण हैं।
पौराणिक हिन्दूधर्म को अपनाकर राजपूत लोग उद्धत और कुलमद के मतवाले बन गये थे । वे विश्वहित और राष्ट्रोन्नति की पुनीत भावनाओं को कुलाभिमान की मादकता में भूल गये थे। प्रत्येक कहता था कि वह सर्वश्रेष्ठ कुल का है-सब लोग उसके महत्त्व को मान्य करें। राजपूतों में परस्पर विवाहसम्बन्ध करते समय कुल की उच्चता और नीचता का बड़ा ध्यान रक्खा जाता था। उनसे बढ़कर यह गेग सब ही जातियों में फैल गया और आजतक भारत में घर किये हुए है। राजकुमारियों के रूपसौन्दर्य की वार्ता सुनकर राजपूत युवक उनके पीछे पागल हो जाते थे और प्रतिद्वन्द्वी बनकर आपस में जूझने लगते थे। इस दयनीय दशा में देश की सुध लेनेवाले राणा प्रताप अथवा वीर भामाशाह जैसे वीर विरले ही हुए । मुसलमानों के आक्रमणों का मुकाबिला करने में कोई भी सफल न हुआ । भारत की स्वाधीनता राहु-प्रस्त हो गई ! मुसलमान देश में अनेक भागों पर शासनाधिकारी हो गये ! उन्होंने अपनी इस्लाम-संस्कृति का प्रचार येन केन प्रकारेण किया। परिणामतः देश में अनेक प्रकार के परिवर्तन हुए। .