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________________ . [हिन्दी चैन साहित्य का . इसी गुटका में मुनि सकलकीर्तिविरचित 'सोलह कारणअतरास' भी दिया है जिसकी रचना इस प्रकार है वीर शिणेसर वसास की गोयम पणमेसड, सोलह कारण वरत सार तहि रासु करेसर । अंबू दीवह भारत खेत मगध छह देस । राजगृह छह नगर हेमप्रभ राज धनेस । एकचित्तु जो व्रत करे नर अहवा नारी , तीर्थकर पद सो लहह जो समकित धारी। सकलकीरति मुनि रासु कियउ ए सोलहकारण , पढहिं गुणहिं जे संख लहि तिह सिवसुहकारण । इसी गुटका में 'जीव-सुलक्षण-संन्यास-मरण' भी लिखा हुआ है, जो इस प्रकार है जीव सुलक्षणा हो, जिणघर भासित एम । परिग्रहा पाहुणा हो विहाडइ सुरधरम जेम । विहरतु सुरधणु जेम परिगहु, कहा तिस सिउ रचा। नित ब्रह्मलोक विचारि हियडत दुष्ट करमहं पंचई । पिय पुत्त बंधुव सयलु अवधू रूप रंगण देखणा। संवेग सुरति संभालि थिरुमति, सुणउ जीव सुलक्षणा । हंसा दुर्लभा हो, मुकति सरोवर तोरि । इन्दिय वाहिया हो पीवत विधयह नीर। अति विषयनीर पियास लागो, विरह व्यापति आकुल्यो । 'चारह अनुप्रेशा सुरति छरिय, एम भूलो बावलो । अब होड एतड कहर तेतउ, सुबबंसह अम्मणु। . संन्यास मरणउ अप्प सरणउ परम रयणमउ गुणु ।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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