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________________ [हिन्दी जैन साहित्य का सयल जिणेसर, प्रणमोपाय, सरस्वति सामण धो मति माय , हीयडे समरु श्री गुरु नाम, जिम मनि वंछित सीसह काम । मिथिलानयरी महिमा घणी, राजा कुम्भ तात तेह तणी। प्रभावति राणि नुं पुत्र सुनाथ, कलसलंछण प्रणमं मलिनाथ । इन्दु वाणारस नयर प्रमाण, एह संवछर संख्या जाणि , सपगछ गायक विभासण भान, श्रीहेमविमलसूरि जुगप्रधान । पूज्य सिरोमणि पण्डितराय, साध विजय गिरुवा गुण गाय । कमलसाधु जयवन्त मुणींद, ना सीसउ भणइ अणन्द । यह किन्हीं कवि आनन्द द्वारा रची गई है। इसमें राजस्थानी भाषा के शब्दों का प्रयोग उन्हें राजस्थान से सम्बन्धित प्रगट करता है। . दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर मैनपुरी के शास्त्र भंडार में एक गुटका संवत् १८१७ का लिपि किया हुआ है। उसमें एक कृति 'मालारोहण' नामक है । यह जिन मंदिर के द्वार पर माला (बंदनवार ) बाँधते हुए पढ़ना चाहिये। यह एक आध्यात्मिक रचना है । नमूना देखियेणमिव जिणवर सिद्ध भाइरिय उज्झाइय पयजुयल, णमिवि साहु वमोष पछलउब्वाहविभव्वयणि कहमि, माल सुन्दर समुज्वल, विजयराय हं कुशलतोया हं. कमरकट मुणिवर हं। धम्मविद्धि अणवरउ भम्बउ हं, जिणइंदह पावरकउ । सन्ति पुण्ठे जिणकरउ सम्वहं, माल पढन्त सुणन्सय हं । मं वहा परिऊसु, उवणउ मंगल वीर तहिं जिण यन्दहु सविसेसु ।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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