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________________ संक्षिप्त इतिहास] . छतीस राय सत्त सिर डाउ, पण सरह उसठि हत्थ भाउ । पुणु गीय गत्त पाडगइ कन्व, परियाणीय सत्य पुराण सब्द । छहभासा छह सण णियाणि, छाणव वाल हीय पाखंड जाणि । सामुहियलक्खण मुणइ सोजु, ते पदीय गुणीय बउदह विविष्णु । भेसह ऊसह गण फुरइ ताहि, अंगुल अंगुल छाणव इवाहि । पुज्झइ पहाउ बहु देस भास, अठारह लिवि जाणीयाणि जास। णवरस चउ वम्महं मुणइ मेय, जिणसमह लहीय चारिउ णिउहय। रइ रहसु काम सस्थुजि मुणेइ, पुणु कागरुदुत्ताहि को जिणेइ । रक्खाणइ पढ़ीय सुमुणि है पासु, भंठाणव इहि जीवह समासु । ए सयल सत्य परिणइय तासु, समाहिगुत मुणिवरह पासु ।, इस उद्धरण की भाषा इतनी सुगम है कि जरा ध्यान देने से उसका भाव विज्ञ पाठक समझ सकते हैं। खास बात तो इसमें वर्णित विद्याओं और कलाओं की महत्ता है, जो उस समय एक शिष्ट राजकन्या को पढ़ना आवश्यक थी। संस्कृतभाषा के अतिरिक्त देशीभाषा (पुरानी हिन्दी ) के तीन मुख्य छंदों-गाथा, दोहा और छप्पय का ज्ञान अलग से कराया जाता था। छै भाषाएँ और अठारह प्रकार की लिपियाँ सिखाई जाती थीं। छै भाषाओं के नामोल्लेख नहीं हैं। खेद है कि कवि ने अपने विपय में कुछ भी नहीं लिखा है । प्रेमीजी ने इनकी एक दूसरी रचना 'चन्द्रप्रभपुराण' का भी उल्लेख किया है। सोलहवीं शताब्दि की रचनाओं में 'ललितांगचरित्र', 'सारमिखामनरास', 'यशोधरचरित्र', 'कृष्णचरित्र' और 'रामसीता चरित्र' का उल्लेख किया जाता है। किन्तु यह पुरानी हिन्दी की रचनायें हैं। इस समय का कवि महाचन्द्र का रचा हुआ 'शान्ति
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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