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(१६) मलार
[ हिन्दी जैन साहित्य का
निशदिन श्री जिन मोहि अधार ॥ टेक ॥
जिनके चरनकमल को सेवत, संकट कटत अपार ॥ निश० ॥ १ ॥ जिनको वचन सुधारस गर्भित, मेटत कुमति विकार ॥ निश० ॥ २ ॥ भव आताप बुझावन को है, महामेघ जलधार ॥ निश● ॥ ३ ॥ जिनको भगत सहित नित सुरपत, पूजत अष्ट प्रकार || निश० ॥ ४ ॥ जिमको विरद वेदविद वरमत, दारुण दुख हरतार || निश० ॥ ५ ॥ मधिक वृंद की विधा निवारो, अपनी ओर निहार ॥ निश० ॥ ६ ॥