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सदिस इतिहास]
२४१ आतमरस चाल्यो मैं अद्भुत, पायो परमदयाल । अब मैं ॥१॥ सिद समान शुद्ध गुण राजत, सोमरूप सुविशाल । अब मैं• ॥३॥ कविवर भूधरदासजी:
(९) राग सारंग। जपि माला जिनवर नामकी ॥ टेक ॥ भजन सुधारससों नहिं धोई, सो रसना किस कामकी । जपि.॥ सुमरन सार और सब मिथ्या, पटतर धूना घामको । विषम कमान समान विषयसुख, कायकोथली चामकी । अपि० ॥१॥ जैसे चित्रनागके माथे, थिर मूरति चित्रामकी । चित आरूढ़ करो प्रभु ऐसें, खोल गुंदी परिनामकी । जपि० ॥३॥ कर्मवैरि अहिनिशि छल जोर्वे, सुधि न परत पलजामकी । भूधर कैसे बनत विसार, रटना पूरन रामकी । जपि० ॥"
(१०) राग धनासरी । शेष सुरेश नरेश 3 तोहि, पार न कोई पावै ॥ टेक ।। कापै नपत व्योम विलसत सौं, को तारे गिन लावै जू। शेष. ।।. कौन सुजान मेघ बूंदन की, संख्या समुमि सुनावै जू । शेष ॥१॥ भूधर सुजस गीत संपूरन, गनपति भी नहिं गावै जू । शेष० ॥३.
(११) राग श्रीगीरी।। काया नागरि जोजेरी, तुम देखो चतुर विचार हो। टेक जैसे कुल्हिया काँचकी, जाके विनसत नाहीं बार हो । काया• ॥.. मांसमयी माटी गई अरु, सानी रुधिर लगाय हो। कीन्हों करम कुम्हार ने, जासू काहू की न वसाप हो । काया० ॥१॥ और कथा याकी सुनौं, यामैं अध ऊरध दशह हो। बीव समिक तहाँ थम रही माई, अद्भुत अचरज येह. हो । काया. १. बरमरित = टूटी फूटी ।