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देख सुपन की संपदा, तू मानत
ये जु नर्ककी आपदा,
धर्मकर्म को भलो, भैया आप निहारिये,
[हिन्दी जैन साहित्य का
सांचे ।
आंचै | कहा० ॥ २ ॥
जर है को
परखो मणि कांचै
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पर सों मति मांचे । कहा• ॥ १ ॥
( ६ ) राग रामकली ।
अरे यह जम्म गमायो रे, भरे हैं० ॥ टेक ॥
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चूश्व पुण्य किये कहुँ अतिहो, तातें नरभव पायो रे ।
देव धरम गुरु ग्रंथ न परसै, भटकि भटकि भरमायो । अरे० ॥ १ ॥ फिर तोको मिलिते यह दुर्लभ, दश दृष्टान्त बतायो रे जो चेते तो चेत रे 'भैया', तोको कहि समुझायो रे । अरे• ॥ २ ॥
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( ७ ) राग केदारो ।
छोड़ि दे अभिमान जिय रे, छांड़ि दे ॥ टेक ॥
काको तू अरु कौन तेरें, सबही हैं महिमाम ।
देख राजा रंक कोऊ, थिर नहीं यह थान । जिय रे० ॥ १ ॥
जगत देखत तोरि चलवो, तू भी खत भान ।
घरी पलकी खबर नाहीं, कहा होय बिहान । जिव रे० ॥ २ ॥ त्याग क्रोध रु लोम माया, मोह मदिरापान ।
राग दोषहि टार अन्तर, दूर कर अज्ञान । जिय रे० ॥ ३ ॥ भयो सुरपुर देव कबहूँ, कबहुँ नरक निदान ।
हम कर्मवश बहु नाच नाचे, भैया आप पिछाम । जिय रे० ॥ ४ ॥
( ८ ) राग देवगंधार ।
अब मैं छांदयो पर अंजाल, अब मैं० ॥ टेक ॥
काय अनादि मोह भ्रम भारी, तज्यो ताहि तत्काल । अब मैं० ॥