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________________ २३४ [हिन्दी जैन साहित्य का मुष पाणि रसाला मदन विसाला, जुब्वणवाला सिरीमाला । पिय कीरति , चंगा कविजन गंगा, त्याग तुरंगा गुण माला ॥ मुख पवैणण हिया महकुणु कहिया, गुरु जन महिया गव लाला। सब जगत पियारा मोर भतारा, भारहमल्ल महीपाला ॥ ११०॥ लीलावह छंदु गरिदु णरिंद, विवजिय चउकल सत्त णिहणं सगणं । णव णव दह चारि विरइ सरस्सरकर डंवर चार चरण सघणं ॥ सिरीमाल सुरिंद सुणंदण गुणि गण रोरु णिकंदण जण सरणं । बब्बरं वंस अकबर साहि सनापत भारहमल भणं ॥११॥ एकनि कहु लच्छि वकसु एकनि कहु विघन हरणं, णिय पय मरणं । एकनि कहु थप्पिनि वाजिणि । हालुकिएहयकुंजरहेमघणं,एकनि कहसेबलिए करकरिवरसजभए अनुचरचरियं । सिरीमाल सिरोमणि भारहमल्ल महीवलि विक्रमु अवतरियं ॥ १२ ॥ जण हरण पढमे पढि दियवर णव गण णिहण सगण भणि सुकइवरे । सुर भनय सुजसु रसु सुह मुह बुहयण दहवंसु वसुण विरह करे ॥ वर विरद अवनिपति सरदससि वदन णवि रदि छवि कवि तिमिर हरे। गिरि जठर कठिन हठ दलन नव कुलिश, असरण जन धन सरण घरे ॥११३॥ कुलकमल विमल रवि मल रवि पिशुन कठिन पवि । विशद सुमति कवि गुण निलयं ॥ जसकुसुम असम रस रसिक वसिक वस; किय अकबर वर धर तिलयं ॥११४॥ नव जुवति कुमुद वन सरद ससि वदन, मदन सदन तन करहु कणयं । पर पुहमि प्रगट बल दलबल हय गय धुरपुर सुर तरु सुर भनयं ॥१५॥ चउपाई मत्ता चउकल भत्ता पुणु पायंते हारं । इथ छंदु गरिटं दह अढ़ पुणु घउ विरई सारं ।। सिरिमाल: सुहिल भारहमलं, पाढिजंतो राया। णिय वंसिं भूपं काम सुरूपं, कित्ति णिमित्तं दाया ॥ ११६ ॥ रांक्याणि , पसिद्धो लछि समिद्धो, भूपति भारहमलं । .
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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