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________________ संक्षिप्त इतिहास ] मुहियहु अचंभव भारमल, तुच जसु णिमल्लु सीतल सिल । तोप सुन वदन घणस्याम दिट्ठ, हियदहण दाह सलित अणि ॥ ८९ ॥ कालिंठी छंदा पाठिज्जती विज्जूमाला चारीकणा, भूपती कित्ती सोहंती, णामना । भूमोहंती ॥ ९० ॥ सजीवम्मा | २३३ कोहा जोहा मत्ता गता तवेरम्मा, हिंसंता वाजी णाचंता, भारू गेहा एहा कंठा ॥ ९१ ॥ छंदु चंदाणणो चारि रकारयं, तिंणि वीसाम भूपत्ति भूधारयं । तुज्झ वाणीमुखि लच्छि कर मंडिया, कित्ति पाथोनिधि पार पेलंतिया ॥ ९२ ॥ कोकिलालाववालावलीलालियं, मंजरी अंगणादासवासालियं । भृङ्ग संकार संगीत गीतालयं, भूपती कोवि कंतावसंताल्यं ॥ ६३ ॥ तिणि पंचक्ला पुणुवि चंदाणणो, णिघण वीसाम जहसेस चंदाणणो । भूपती कित्ति ससिबिंब धवलं गया, अंबुधर अंबुणिधि अवधिपारंगया ॥ ९४ ॥ कणकमणिजटित आभरणभर हुल्लियं, मुत्ति मकरंदकरचरणदलतुलियं । गंडयुग अछ जोणीज फल लंबिया, भूप देवद्रुमं वेलि अवलंबिया ॥ ९५ ॥ जो चारितकर, जो तिणि वीसाम०, सारंग छंदु सिरीमाल आराम० । भोजराजी सुधाधाम संकास, जाणिज भूपत्ति कित्ती वधूहास ॥९६॥ भूमंडला खंड छाए धरा दान, आखंडला डंवरोद्दड संमाण । कदिंबिणी णाद संवाद कोदंक, भूपति भारू उमानाथ उच्चंड ॥ ९७ ॥ सारंग संगार रसबीर अभिराम, पंचकलाचारिपय तिणि वीसाम । सिरीमाल भूपाल पढि देवकुलनंदु, दारिद्र धूमध्वजं कीत्ति नवचंदु ॥९८॥ व्योमापगा कुसुमसम सुजसु आचूल, करकणक मत्थै ससीभीगु अनुकूल । वृष वाहणं भूति अगैप्रिया साथ, भारू वर श्रापदाता उमानाथ ॥ ९९ ॥ पढमपठितियपगणनिहणठवइ धणुहरो, धवलइय भणड्डू फणिपयहच उगइवरो । णिणि हयगजवकसअवणिपतिदिनयरो, कनककरकिरणजनमनतिमिरघणहरो मणि माणिक मागहु त्याग तरंगा, धनसंचन सिष बहु कविजन गंगा । पिय लछि जना बहु कीरति चंगा; बहु नायक कैसा जुब्वणु वाला ॥१०९ ॥ पिहु खिलाबहु मदन विसाला, मत सौकि सुनावहु मुख वाणि रसाला ।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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