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________________ संदिस इतिहास] २३५ धम्मह उबिहउ दाण गरिहउ दिट्ठो राणा अरिउर सल्लं । वर वंसह बब्बर साहि अकबर सब्बर किय सम्माणं । हिंदू तुरिका णात उरिगाणा सया माणहि भाणं ॥११७॥ मरहट्ठा छंदं भणइ फणिदं, कल उणतीस करीज । गण आइहिं छक्कल पंच चउक्कल, अंतगुरु लहु दीज ॥ विरई दह भटुं चरण गरिदं पुणु एगारह तीज ; उवमा भूपत्ती णिम्मल कित्ती भारहमल्ल भणीज ॥११॥ पढमं भूपालं पुणु सिद्धिरिमालं, सिरिपुर पहणु वासु । पुणु आबूदेसि गुरुउवएसिं सावय धम्म णिवासु ॥ धण धम्महं णिलयं संघह तिलयं रंका राउ सुरिंदु । ता वंश परंपर धम्म धुरंधर, भारहमल गरिंदु ॥११॥ सरद ससि विसद जसविमल किय महियलो। जलज मुख सुख सदण मदन छवि रविदलो ॥ विविह विहि विहि किय उ सरस णव रसमउ । अवनिपति दिविजपति तनयसम रसमउ ॥१०॥ पढमं विविलहु अंवजिय पहु अंचउ । कल दहगण सजिधरा, भण मयणहरा । दहवसु चउद्दशयं पुणुवि विश्नुमया । चउपय चउवीसामकरा गु : अंतिधारा ॥ १०२ ॥ हयगय रह दानं, कित्ति णिदाणं । काहि अकब्बर थप्पिगणे, जयलछि पणे ॥ १०३ ॥ जगतीपति मंडण, रोरु विहंडण । भूपति भारहमल्ल भणे, कुल गगण नणे ॥ १० ॥ उदयगिरि हेवं, परसुर सेवं, जणणीणामध्यमो, प्राचीवयमय माची। उदयं दिवि पूर्व सहस मयूषं, मुदित विहंगम कवि जाची वसुधा राची ॥ कुलकमल विकास प्रगटित आसं, पिशुन कुसेसय मंदछवी, अरि सिखरिप्रवी। गोणर गिरवंधं शत नृपकधं, भूपति भारहमल्ल रवामहि काम गवी ॥१०५॥
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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