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संचित इतिहास] जैन पंचायती मन्दिर दिल्ली में है। इसमें हंसराज बच्छराज की कथा का वर्णन है । भाषा में गुजराती-पन है । उदाहरण देखिये
"आदीस्वर आर्दै करी, चौबीसों जिण चन्द । सरसति मनि समरौं सदा, श्री जयतिलक सुरिंद ॥ १॥ पुन्ये उत्तम कुल हुदै, पुन्य रूप प्रधान । पुन्य पूरो आउषो, पुन्थे बुद्ध निधान ॥ ३ ॥ पुन्य सब सुष सँपजै, पुन्य सम्पति होइ । राज रिद्धि लीला घणी, पुन्य पामै सोइ ॥ ४ ॥ पुन्य अपर सुणज्यो कथा, सुणतां अचिर्य थाह । हंसराज बछराज नृप, हुमा पुन्य पमा ॥ ५ ॥
तसु पार्ट महिमा निलो रे, श्री जिनतिलक सूरि पसाय । मोटा मोटा भूपती रे, प्रणमें तेहना पाय ॥ ६ ॥ एह प्रबन्ध सुहामणौ रे, कहै श्री जिनोदय सूर ।
भणौं गुणे श्रवणे सुर्णे रे, तस घर आनन्द पूर ॥ ७ ॥ ब्र० ज्ञानसागरजी काष्ठासत के आचार्य श्री भूषण के शिष्य थे। उनका रचा हुआ 'कथासंग्रह' नामक अन्य श्री दि० जैन पंचायती मन्दिर दिल्ली में है। इस ग्रन्थ में रक्षाबन्धन, लब्ध. विधानव्रत, अष्टान्हिका व्रत आदि की कुल बीस कथायें उनकी रची हुई हैं। रचना साधारण है। कहीं कहीं पर कविता अच्छी है । उदाहरण देखिये
"विद्याभूषण गुरु गच्छपती, श्रीभूषण सूरीवर सुभमती ।
ता प्रसाद पायो गुणसार, वह ज्ञान बोले मनुहार ॥ xx