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________________ २२२ [हिन्दी मैन गाहित्य का कौन कथा जगवासी जन की मुनिवर निरपि हरषि चषि मुसकी ॥ भन्तरमाव विचार धारि उर, उमगत सरित सुरस की ॥ए जिन०॥ महिमा अदभुत मान गुनन की, दरसन से सम्यक निज बसकी ॥ नयन विलोकत रही निरन्तर, बानि विगारि असलकी ॥ए जिन०॥" देखिये इस पद में कैसी आध्यात्मिक मक्तिसरिता प्रवाहित है "तेरोही नामध्यान जपिकरि जिनवर मुनिजन पावत सुखघन अचलधाम । व्रत-तर-शम-बोध सकल फल होत, सत्य भक्ति मन धारत सुगुनग्राम ॥तेरो०॥ सरवज्ञ वीतराग परगट बदभाग, शिवमगकर वाग क्षरै माझ जुगजाम : लपि सुनि भविजन नयन धरत मन हरत भरम सारत परम काम ॥तेरो०॥" इस पद में कविजी प्राणियों को सचेत-सावधान करने के लिये कहते हैं "कौन भेष बनायौ है, अरे जिय ! मोही ज्ञान गमाइ, निज गुन रूप विगारि ॥ टेक। आस बढ़ाय, विसास कीये परवास, लिये धन आन दिया रे, दुपिया त्रास वियारि कौन०॥ पास लगाय निवास किये गति प्यार, लिये तन प्रान नयारे, मरिया तास चितार कौन०॥ 'नयन' संभारि विचारि हिये जिनराज दिये, गुन आनन्द लारे, सुषिया प्यास निवारि कौन। कवि जिनोदय सूरि खरतरगच्छीय श्री जिनतिलक सरिके शिष्य थे। उन्होंने 'चतुरखण्डचौपई' नामक अन्य की रचना की थी, जिसकी एक प्रति सं० १८९५ को लिपि की हुई श्री दि०
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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