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संक्षिप्त इतिहास]
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__पं० शिवचंद्र x ने 'मतखंडन विवाद' ( १८४१) गध में लिखा था।
पं० जोगीदासजी की रची हुई 'अष्टमी कथा' श्री दि० जैन पंचायती मन्दिर दिल्ली के भण्डार में है, जिसमें उन्होंने अपना परिचय निम्नप्रकार दिया है"सब साहन प्रति गठमल साह, ता तन सागर कियो भव लाह ।। पोहकरदास पुत्र ता तरमो, नन्दो जब लग ससि सूर गनौ । गुरु उपदेस करी यह कथा, जीवो चिर जो इदह (?) सदा ॥ अग्रवाल रहै गढ़ सलेम, जिनवाणी यह है नित तेम । सुणि कह्या मुण पुष्वह आस, कथा कही पण्डित जोगीदास ॥"
पं० प्रागदास ने एक 'जम्बूस्वामी की पूजा' भाषा छन्दोबद्ध रची है, जिसकी एक प्रति उक्त मन्दिर-भण्डार में है। कवि ने केवल अपना नाम निम्नलिखित पद्य में ध्वनित किया है
"मथुरा ते पश्चिम कोस आध, छत्री पद द्वय महिमा अगाध ॥१४॥ वृजमण्डल में जे भव्य जीव, कातिग वदि रथ काढत सदीव । केऊ पूजित केऊ नृत्य ठॉनि, केऊ गावत विधि सहित तान ॥१५॥ निस घोस होत उत्सव महान्, पूरत भव्यन के पुन्य थान । पद कमल प्राग तुव दास होय, निज भक्तिविभव दे अरज मोहि॥१७॥"
कवि नयनसुखदासजी जैन-समाज के एक प्रसिद्ध कवि थे । उनके रचे हुए पद्य बड़े सुन्दर और प्रतिभापूर्ण होते हैं। उदाहरण देखिये'ए जिनमूरति प्यारी, राग दोष विन, पानि लपि सांत रसकी ॥टेक॥ त्रभुवन भूति पाय सुरपति ह, राषत चाह दरस की ॥ए जिन०॥
x अनेकान्त वर्ष पृ. ५६५-६६ ।