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________________ संचित इतिहास ] २१९ हरजसराय + जी स्थानकवासी सम्प्रदाय के अच्छे कषि थे । 'साधु गुणमाला', 'देवाधि- देवरचना' और 'देवरचना' नामक ग्रन्थ उनके बनाये हुए हैं । क्षमाकल्याण पाठक + ने सं० १८५० में 'जीव - विचारवृत्ति' की रचना की थी । 'साधु प्रतिक्रमणविधि', 'श्रावक प्रतिक्रमणविधि,' आदि इनकी रचनायें हैं । बखतराम चाटसूँवासी ने जयपुर में 'धर्मबुद्धि की कथा ' ( १८०० ) और 'मिथ्यात्व खण्डन वचनिका' (१८२१ ) नामक ग्रन्थ रचे थे । ‡ पं० लालचन्द सांगानेरी ने व्याना में षट्कम्र्मोपदेश रत्नमाला, वरांग चरित्र, विमल पुराण आदि ग्रन्थ सं० १८१८ से १८४२ तक रचे हैं। पं० नवलराम खण्डेलवाल वसवा निवासी ने 'वर्द्धमान पुराण' छन्दबद्ध ( १८२९ ) रचा था । * पं० देवीदास खंडेलवाल बसवा निवासी ने भेलसा में 'सिद्धान्तसार संग्रह वचनिका' (सं० १८४४) रची थी। * पं० सम्पतराय ने† 'ज्ञानसूर्योदय नाटक' छंदबद्ध (१८५४) रचा था । . पं० विलासराय इटावा निवासी कृत 'नयचक्र वचनिका ( १८३७ ) और 'पद्मनंदि पचीसी वचनिका' नामक ग्रन्थ हैं। पं० मन्नालाल खंडेलवाल जयपुर निवासी ने दिल्ली में 'चरित्रसार' (१८७१ ) ग्रन्थ रचा था । * + हि० जै० सा० इ० पृ० ८१ | + मा० दि० जै० ग्रं ना०, पृ०६-१७ |
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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