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[हिन्दी बैन साहित्य का रचे हुवे ग्रंथ 'गुरूपदेश श्रावकाचार' छन्दोबद्ध (१८६७), सम्यक्त्व प्रकाश ( १८७१ ) और अनेक पूजायें हैं।
देवीदास दुगोदह केलगवाँ जिला झाँसी के रहने वाले थे। उन्होंने 'परमानन्द विलास' (१८१२) 'प्रवचन सार छ०', 'चिद्विलास वचनिका' और 'चौबीसी पाठ' रचे थे।
सेवाराम राजपूत के रचे हुये 'हनुमचरित्र' छन्दोबद्ध (१८३१) 'शान्तिनाथ पुराण' और 'भविष्यदत्त चरित्र' हैं। यह देवलिया प्रतापगढ़ निवासी थे।
भारामल्लजी* फर्रुखाबाद के रहने वाले सिंघई परशुराम के पुत्र थे। वह खरुउवा जैनी थे। उन्होंने भिंड में रहकर सं० १८१३ में 'चारुदत्त चरित्र' रचा था । सप्त ब्यसन चरित्र, दान कथा, शील कथा, दर्शन कथा, रात्रिभोजन कथा ग्रन्थ भी उनके रचे हुये हैं। कविता साधारण है; परंतु चरित्र ग्रंथ होने के कारण उनमें से अधिकांश छप चुके हैं और उनका प्रचार भी अधिक है।
गुलाबराय* ने 'शिखिर विलास' स० १८४२ में रचा था।
थानसिंह* का रचा हुआ 'सुबुद्धि प्रकाश छन्दो०' (स. १८४७) ग्रन्थ है।
नन्दलाल छावड़ा ने 'मूलाचार की वचनिका' स० १८८८ में रची थी।
मन्नालाल सांगा की -चारित्र सार वचनिका (१८७१) है। यति कुशलचंद गणिका आध्यात्मिक ग्रन्थ 'जिनवाणीसार' है।
यति मोतीचंदजी जोधपुर नरेश श्री मानसिंहजी की सभा के रत्नों में से एक थे। राजा ने उन्हें 'जगद्गुरु भट्टारक' का पद प्रदान किया था । हिन्दी के श्रेष्ट कवि थे।
-हि. जै० सा० इ० पृ. ८०.८१ ।
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