________________
२१७
संक्षित इतिहास] साम्प्रदायिक नाम छोड़ कर अभेदमार्गीय 'चिदानन्द' नाम रक्खा था। उन्होंने मार्मिक और अनुभवपूर्ण आध्यात्मिक पद बहुत से रचे हैं। 'स्वरोदय' नामक एक निबन्ध सारविज्ञान पर लिखा था । एक पद का नमूना देखिये
"जौं लौं तत्त्व न सूझ पड़े रे। तौं लौं मूढ़ भरमवश भूल्यो, मत ममता गहि जगसौं लहै रे ॥ अकर रोग शुभ कंप अशुभ लख, भवसागर इण भाँति मडै रे। धान काज जिय मूरख खितहड़, उखर भूमि को खेत खड़े रे ॥ उचित रीत ओलखा बिन चेतन, निश दिन खोटो घाट घडै रे । मस्तक मुकुट उचित मणि अनुपम, पग भूषण अज्ञान जड़े रे ॥ कुमता वश मन वक्र तुरग जिम, गहि विकल्प मगाँ हिं अडैरे । चिदानन्द, निज रूप मगन भया, तब कुतर्क तोहि नाहिं नडैरे ॥"
टेकचन्द* के रचे हुये ग्रंथ 'श्रुतसागरी तत्त्वार्थसूत्रटीका की वचनिका' (१८३७ सं०), 'सुदृष्टितरंगिनी वचनिका' (१८३८), 'षट् पाहुड वचनिका', 'कथाकोष छन्दोबद्ध' 'बुध प्रकाश छहडाला'
और अनेक पूजापाठ हैं। सुष्टि तरंगिनी की टीका साढ़े सत्रह हजार श्लोकों की है।
नथमल विलाला* भरतपुर निवासी और राज्य के खजांची थे। उन्होंने 'सिद्धान्तसार दीपक' ( १८२४ ), 'जिनगुणविलास', 'नागकुमार चरित्र' (१८३४), 'जीवंधर चरित्र ( १८३५) और जम्बूस्वामी चरित्र' ग्रन्थ पद्य में रचे थे । कविता साधारण है।
डालूराम माधवराज पुर निवासी अग्रवाल जैनी थे। उनके • हि• जै० सा० इ०, पृ० ८०-८।।