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संदित इतिहा
___ २१५ नाग सिंह आदि वन जंतु भय करें जहाँ कंपित सुपादप पवन पेखियतु है॥ निरंतर वृष्टि करैं जलद अगम नीर । 'तलु तले खड़े मुनि तन सोषियतु हैं।" मुनि ध्यान के मिषसे वर्षाऋतु का कितना सजीव चित्रण कवि ने किया है । ग्रीषम ऋतु का वर्णन भी पढ़िये
"ग्रीषम की रितु संतापित जहाँ शिलापीठ पवन प्रचार चारि दिशा में न जा समैं । सूखि गयो सरवर नीर और नदी जल मृगन के यूथ वन दौड़ें फिरें प्यास में ॥ जलाभास देषियतु दूरितें सुथल जहाँ जाम युग घाम तेज करेऊ अवास में। गुफा तल सलिल सहाय छांदि धीर मुनि । गिरि के शिषिर योग माड़ि बैठे ता समैं ॥"
कविता साधारणतः अच्छी है।
सदानन्दजी भूमिग्राम (भौंगांव, जिला मैनपुरी ) के निवासी थे । उनके पिता का नाम भवानीदास था। उन्होंने तोतारामजी के लिये स० १८८७ में 'कम्पिलाजी की रथयात्रा' का वर्णन पद्य में लिखा है । कविता साधारण है। ____ विजयनाथ माथुर टोडे नगर के निवासी थे। उन्होंने जयपुर के दीवान श्रीजयचंदजी के सुपुत्र श्री कृपाराम और श्रीज्ञानजी के इच्छानुसार सं० १८६१ में भ० सकलकीर्ति कृत 'वर्द्धमानपुराण' का हिन्दी पद्यानुवाद किया था। कविता साधारण है। अपने परिचय में कवि ने लिखा है