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________________ संक्षिप्त इतिहास] २११ दीवानजी ने सं० १८८३ में वृन्दावन के श्री परगराय से लिखाई थी। ___ मनरंगलालजी कन्नौज के रहनेवाले पल्लीवाल दि० जैन श्रावक थे। उनके पिता का नाम कनौजीलालजी और माता का नाम देवकी था। कन्नौज में गोपालदास जी एक धर्मात्मा सज्जन थे। उनके कहने से कवि ने 'चौबीस तीर्थङ्कर का पाठ' सं० १८५७ में रचा था । इनकी कविता अच्छी और मनोहर है । इसके अतिरिक्त 'नेमिचन्द्रिका' 'सप्तव्यसनचरित्र' और 'सप्तर्षिपूजा' नामक ग्रन्थ भी इन्हीं के रचे हुए हैं। 'शिखिरसम्मेदाचलमाहात्म्य' नामक इनकी एक अन्य रचना हमारे संग्रह में है, जिसे उन्होंने सं० १८८९ में रचा था । उदाहरण देखिये "प्रणम रिषभ जिनदेव, अजित संभव अभिनंदन । सुमत पदम सुपास चंदप्रभु कमनिकंदन ॥ पुष्पदंत सीतल श्रीयांस वासपुज विमलवर । जिन अनंत प्रभु धर्म सांत जिन कुंथ अरह नर ॥ श्री मल्लिनाथ मुन सुष्ट व्रत, निम नेमी आनंद भर । जिन महाराज वामा तनय, महावीर कल्यानकर ॥१॥ सिपिर महातम देष के इह सरधा हम कीन । करो जात मन लायके, जो सुष चाहे नवीन ॥ पोत्र होत पौत्र होत और परपुत्र होत, धन धान्य सदा मान्य होत लोक में । कामदेव रूप होत भूपन को भूप होत, भानंद को रूप होत देवन के थोक में ॥
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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