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[हिन्दी जैन साहित्य का प्रकाश' छप चुके हैं। इनकी पद्यरचना सुन्दर और छन्दोभंग आदि दोषों से रहित हैं । गद्य का नमूना देखिये
"द्रव्य गुण पर्याय का यथार्थ अनुभवना अनुभव है। अनुभव ते पंच परम गुरु भये, हैं, होंहिगे प्रसाद अनुभव का है । .....इस शरीर मन्दिर मैं यह चेतन दीपक सासता है। मन्दिर तौ छूटै पर सासता रतन दीप ज्यौं का त्यों रहै ।" भूधर मिश्र आगरे के समीप शाहगञ्ज के निवासी ब्राह्मण थे। उनके गुरु का नाम रंगनाथ था। 'पुरुषार्थसिद्धथुपाय' को पढ़ने से उन्हें जैन धर्म का श्रद्धान हुआ था। इस ग्रन्थ की भाषा टीका उन्होंने स० १८७१ में रची थी । एक अन्य ग्रन्थ 'चर्चा समाधान' भी इनका रचा हुआ है । यह कवि भी अच्छे हैं । पुरुषार्थसिद्धथुपाय का मंगलाचरण देखिये
"नमो आदि करता पुरुष, आदिनाथ अरहन्त । द्विविध धर्म दातार धुर, महिमा अतुल अनन्त ॥ स्वर्ग-भूमि पाताल-पति. जपत निरन्तर नाम । जा प्रभुके जस हंसकौ, जग पिंजर विश्राम ॥ जाकौं सुमरत सुरत सौं, दुरत दुरन यह भाय ।
तेज फुरत ज्यों तुरत ही, तिमिर दूर दुर जाय ॥" पण्डित लक्ष्मीदासजी सांगानेर के रहने वाले थे। भट्टारक देवेन्द्रकीर्तिजी उनके गुरु थे। जिस समय विष्णुसिंहके पुत्र राजा जयसिंहजी सांगानेर में राज्य कर रहे थे उस समय पण्डित लक्ष्मीदासजी ने 'यशोधरचरित्र' की रचना की थी। इस रचना को उन्होंने सकलकीर्ति आचार्य और कवि पद्मनाभ कायस्थ कृत संस्कृत भाषा के 'यशोधरचरित्रों से सार लेकर रचा था। कविता साधारण है