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संदित इतिहास]
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राजा का राज्य जयपुर में था। जयपुर में लश्करी देहरा (मंदिर) के मूलनायक भगवान् नेमिनाथ प्रसिद्ध थे।
"लघुसुत सेवाराम यह ग्रन्थ रच्यो भवि सार ।
पदै सुनै तिनु पुरिषक, उपजत पुन्य अपार ॥" इसकी एक प्रति श्री नया मन्दिर धर्मपुरा दिल्ली में (नं० ऊ १९) है । शायद इन्हीं सेवारामजी का रचा हुआ 'शान्तिनाथपुराण' जैन सिद्धान्त भवन आरा में है। कवि ने उसे देवगढ़ में सं० १८३४ में रचा था। इस समय देवगढ़ में सावन्तसिंह राजा . का राज्य था और नगर में अनेक जैनी रहते थे।
बासीलालजी ने 'वैराग्य शतक' का पद्यानुवाद सं० १८८४ में किया था । वह रचना का प्रसङ्ग यों बताते हैं
"मूल ग्रन्थको मरम पोलिकै, कियौ अरथ गिरिधारी लाल । ता अनुसार करी शुभ भाषा, लषि मण फुनि कवि बांसीलाल ॥
पोस सुकल दोयज तिथि, संवत विक्रम जान ।
ठारासै चौरासिया, वार गुरू शुभ मान ॥१४२॥" पद्यानुवाद प्रायः दोहा छन्द में है । नमूना देखिये
"अरथ संपदा चिंतवै, आऊषौ नहिं जोय । अंजली मैं जल क्षीण है, तैसे देह समौय ॥ ९ ॥ रे जिय ज्यौ कल कौं करै, सोही आजि करेय ।
ढील न करि यामै जतू , निश्चय उर धर लेय ॥१०॥" दीपचन्दजी आमेर (जयपुर) के रहने वाले काशलीवाल गोत्रीय खण्डेलवाल थे। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों में रचना की थी। इनके रचे हुए अनेक ग्रन्थ हैं। 'ज्ञानदर्पण' और 'अनुभव