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[हिन्दी जैन साहित्य का कवि में प्रतिभा है। वह देश और व्यक्ति का चरित्र चित्रण सुन्दर रीति से करता है। प्रेमीजी ने कवि लालचन्द सांगानेरी का भी उल्लेख किया है। सम्भवतः वह पांडे लालचन्दजी से भिन्न है। उनके रचे हुए ग्रन्थ 'षटकर्मोपदेशरत्नमाला' ( १८१८) वरांगचरित्र, विमलनाथ पुराण, शिखरविलास, सम्यक्त्वकौमुदी, आगमशतक और अनेक पूजाग्रन्थ छन्दोबद्ध हैं। (हि० ० सा० इ०, पृ० ८१) __ विजयकीर्ति भट्टारक नागौर की गद्दी के थे। और भ० भवनभूषण के पट्टधर ये । इन्होंने सं० १८२७ में 'श्रेणिक-चरित्र' छंदोबद्ध रचा था और जब वह संवत् १८२९ में अजमेर में थे, तब उन्होंने 'महादंडक' नामक सिद्धान्त ग्रन्थ रचा था; यथा
"विजयकीर्ति मुनि रच्यो सुग्रंथ, भव्यजीव हितकार सुपंथ ॥४४॥
___ गढ अजमेर सुथान श्रावक सुष लीला करें।
जैनधर्म बहु मान, देव शाख गुरु भक्ति मन ॥" श्रीनया मन्दिर धर्मपुरा दिल्ली में इसकी एक प्रति (उ १९ ख) यती शिवचन्द्र कृष्णगढ़ की लिखी हुई सं० १८३८ की है। ' बखतराम शाह जयपुर लश्कर के निवासी थे। इन्होंने 'मिथ्यात्वखंडन' और 'बुद्धिविलास' नामक दो ग्रन्थ रचे थे। कुछ पद भी उनके रचे हुए हैं। उनके पुत्र जीवनराम, सेवाराम, खुशालचन्द और गुमानीराम थे। जीवनराम ने प्रभुकी स्तुति के पद रचे थे। इनका उपनाम जगजीवन था।
सेवाराम शाह ने सं० १८५८ और १८६१ के मध्य में 'धर्मोपदेशसंमहा नामक ग्रन्थ रचा था। उनके समय में प्रतापसिंह