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________________ [हिन्दी जैन साहित्य का "सहसकीरत गुरु चरण कमल नमि रास कीयो। सुधे पण्डीत जन मति हास करीयो । नव सत सै नव दोह, अधिक संवत तुम जाणउ । माघ मास रविदिन पंचमी, तुम रिषिसुम आणउ ॥" हमारे संग्रह के एक गुटका में इनका एक 'आदिनाथस्तवन' भी है "वीतराग अनन्त अतिबल मदन मान विमदनं । वसुकर्म-धन-सारंग पंडन मविवि जिन पंचाननं ॥१॥ वर गर्भ जन्म तपो गुनं, दुति रूढ़ प्रभु पद्मासनं । पदपिण्डरूप निरजोजनं, रति सुकलध्याननिरंजनं ॥२॥ दशअष्ट दोष विवर्जितं, प्रतिहार अष्ट अलंकृतं । जर जन्म मरन निकंदितं, धनपालकवि क्रितवंदितं ॥६॥" पांडे लालचन्दजी अटेर के निवासी थे। संवत् १८२७ में इन्होंने 'वगंगचरित्र' भाषा की रचना की थी। इसकी रचना में कवि को आगरे के श्री नथमलजी विलाला से सहायता प्राप्त हुई थी, जो हीरापुर में आ रहे थे जहाँ पांडे लालचन्द विद्यमान थे। पांडेजी ब्रह्मसागर के शिष्य थे । परिचयछन्द पढ़िये"देस भदावर सहर अटेर प्रमानिये, तहाँ विश्वभूषन भट्टारक मानिये । तिनके सिष्य प्रसिद्ध ब्रह्मसागर सही, अग्रवाल बरवंस विष उतपति लही ॥९॥ यात्रा करि गिरिनारि सिपरकी अति सुषदायक , फुनि आये हिंडौन जहाँ सब श्रावक लायक। . जिनमत कौ परभाव देषि निजमन थिर कीनौं , महावीर जिन चरन कमलौं सरनौं (लीनौं) ५९२॥
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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