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________________ संक्षिप्त इतिहास] २०३ ___ कवि निर्मल की रची हुई 'पंचाख्यान' नामक रचना श्री पंचायती मन्दिर, दिल्ली के शास्त्रभण्डार से हमें देखने को प्राप्त हुई है। यह संस्कृत ग्रन्थ का हिन्दी पद्यानुवाद है। नीति का यह सुन्दर प्रन्थ सर्वसाधारणोपयोगी है। कवि ने न अपना कुछ परिचय दिया है और न रचनासंवत् लिखा है। मंगलाचरण में जिन भगवान् की स्तुति की है, जिससे उनका जैनी होना प्रकट है। 'पंचाख्यान' की यह प्रति सं० १८०३ की लिखी हुई है। रचना. का नमूना देखिये "प्रथम जपू अरिहंत, अंग द्वादश जु भावधर । गणधर गुरु संजुत्त, नमों प्रति गणधर तिशतर ॥ x बंध्या सुतहि जनै नहीं, वा दुष थोरो जॉणि । शठ सुत नैनां देषीयै, यौ दुष नहीं समाण ॥२६॥ सब निज थांनिक सुष लहै, सब सुप समरै राम । सहसकृत भाषा कीयौ, श्रावक निर्मल नाम ॥७२॥ पंचाख्यान कहे प्रगट, जो जाणे नर कोय । राजनीति मैं निपुण है, पृथ्वीपति सो होय ॥७५॥" कवि धर्मपाल पानीपत के निवासी थे। वह अग्रवाल गर्गगोत्रीय श्रावक थे। उनके पूर्वज भोजराज और पृथ्वीपाल तेजपुर में रहते थे । वहाँ से आकर वह पानीपत में रहे थे । तब धर्मपाल ने संवत् १८९९ में 'श्रुतपंचमीरास' रचा था। उनके गुरु सहस्रकीर्तिजी थे
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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