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________________ [ हिन्दी जैन साहित्य का केशौदासजी की 'हिंडोलना' नामक एक रचना बड़ा मंदिर मैनपुरी के एक गुटका में देखने को मिली है, जो सं० १८१७ की ढाका शहर की लिखी हुई है २०२ " सहज हिंडोलना झूलत चेतनराज । जहाँ धर्म्म कर्म्म संजोग उपजत, रस सुभाउ बिभाउ । जहाँ सुमन रूप अनूप मंदिर सुरुचि भूमि सुरंग । तहां ग्यान दरसन पंध अविचल छरन आड़ अभंग ॥ x x X ते नर विचक्षण सदय लक्षण करत ग्यान विलास । कर जोरि भगत विशेष विधि सौ नमत केशौदास ॥" कवि इन्द्रजीत का रचा हुआ 'श्री मुनिसुव्रत पुराण' दिल्ली के श्रीनया मन्दिर धर्मपुरा के शास्त्र भण्डार में ( नं० अ७) सं० १९८० का लिखा हुआ विद्यमान है। इसे कवि ने मैनपुरी में सं० १८४५ में रचा था । कवि के परिचयात्मक पद्य ये हैं "केवल श्री जिन भक्ति को, हुव उछाह मन माँ हि । ताकर यह भाषा करो, ज्यों जल शशि शिशु चाहि ॥ २३३ ॥ श्री जिनेन्द्र भूषण विदित, भट्टारक महि माँ हि । तिनके हित उपदेश सों, रच्यो ग्रन्थ उत्साह ॥ २३४ ॥ x x x रंधि' द्विगुण शत प्यार" शर", संवत्सर गत जान । पौष कृष्ण तिथि द्वैज सह, चन्द्रवार परिमान ॥ २३७॥ तादिन पूरो ग्रन्थ हुव, मैनपुरी के माँहि । पढ़ें सुनें उर में धरें, सो सुर रमा लहाहि ॥ २३८॥ द श्री जिम चरन कंज, विघन हरन सुखकार । तिनही के परभाव वश, रथ्यो ग्रन्थ शुभसार ॥ २३९॥" x
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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