________________
[हिन्दी जैन साहित्य का
गम्भ-जन्म-तप णाण-पुण, महा अमिय कल्लाण ।
चउबिय-सका आय किय, मण-वकाय महाण ॥ २ ॥ xxx
कल्लाणक णिग्वाण यह, थिर सब पढ़ि दातार । दीजै जण हरिचन्द कौ लीजै अपणे सार ॥१५॥" इसके अतिरिक्त उन्होंने सं० १८३६ में हिन्दी में 'पंचकल्याण-महोत्सव' भी रचा था
"कल्यानक नायक नमो, कल्प कुरुह कुल कन्द ()। कल्मषहर कल्याण कर, बुध-कुल-कमल दिनंद ॥
जिनधर्म प्रभावन, भव-भव-पार्वन, जण हरिचंद चहंत ॥ तीन तीन वसु चंद्र ये, संवत्सर के अंक ।
जेष्ठ सुकल सप्तमि सुभग, पूरत पढ़ौ निसङ्क ॥" कवि अनकलालजी जिला एटा के अन्तर्गत सम्भवतः अधतिया (सराय अघत ) के रहने वाले थे। उनके पिता का नाम कुसलचंद था । कारणवश कवि झुनकलाल सकूराबाद (शिकोहाबाद ) पहुंच गये । वहाँ अतिसुखराय नामक एक धर्मात्मा सेठ रहते । उन्होंने कवि से 'नेमिनाथजी के कवित्त' रचने को कहा
और उनकी इच्छा को शिरोधार्य करके कवि ने इन कवित्तों को स०.१८४३ में रचा । रचना अच्छी है और तत्कालीन 'ख्यालों' से सादृश्य रखती है । उदाहरण देखिए
"नेमिनाथको हाथ पकरि के खड़ी भई भावज सारी। . . . . ओई चीर तीर सरवर के तहाँ खड़ी हैं जदुनारी ॥ .. * कवि ने अपना निवास स्थान 'अपातजगा लिखा है। .