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[ हिन्दी जैन साहित्य का गिर पर चढ़ते जायक,. जिहां तीरथ तिहां जांहि । तेरो प्रभु तुझ पास है, मै तुझ सूझत नाहि ॥२७॥
.गेह छोड़ धन में गये, सरे न एको काम । आसा तिसना ना मिटी, कैसैं मिलिहैं राम ॥३१॥
गोरे गोरे गात पर, काहे करत गुमान । ए तो कल उडि जाहिर्गे, धूवां धवलर जान ॥३३॥
घात वचन नहिं बोलियै, लागै दोष अपार । कोमलता में गुन बहू, सबकों लागें प्यार ॥३८॥
संवत् अठार त्रेपर्ने, सुकल तीज गुरुवार । जेठ मास को ग्यान इह, चेतन कियो विचार ॥४३५॥
ग्यानबीन जानौं नहीं, मन में उठी तरंग।
धाम ध्यान के कारने, चेतन रचे सुचंग ॥४३७॥ यति ज्ञानचंद्रजी उदयपुर राज्य के मांडलगढ़ में रहते थे। राजस्थान के इतिहास के ज्ञाता और संग्रहकर्ता थे। राजस्थान का इतिहास लिखने में कर्नल टॉड को इन्होंने बहुत सहायता दी थो । टॉड सा० इन्हें अपना गुरु मानते थे। यह अच्छे कवि थे। इनकी रची हुई फुटकर कविताएँ मिलती हैं। मिश्रबन्धुओं ने इनका पद्य रचनाकाल सं० १८४० में लिखा है। (हि० ० सा० इ०, पृ०७६)