________________
[हिन्दी जैन साहित्य का चौथा अन्य कविवर की तमाम फुटकर कविताओं का संग्रह 'वृन्दावन विलास' है, जो एक बार छप चुका है। 'अर्हन्त पासा केवली' भी उनका रचा हुआ है । 'वृन्दावन विलास' की रचनाओं का नमूना देखिये
"जो अपनो हित चाहत है जिय, तो यह सीख हिये अवधारो। कर्मज भाव तजो सबही निज, आतमको अनुभौ रस गारो॥ श्री जिमचंद सों नेह करो मित, आनंद कंद दशा विसतारो। मूद लखै नहिं गूढ कथा यह, गोकुल गाँव को पैड़ों ही न्यारो ॥" एक पद भी देखिये"हमारी बेरियों काहे करत अबार जी ॥ टेक ॥ इह दरबार दीन पर करुना, होत सदा चलि आई जी ॥ हमारी० ॥ मेरी विया विलोकि रमापति, काहे सुधि विसराई जी ॥ २ ॥ मैं तो चरन कमलको किंकर, चाहूँ पद सेवकाई जी ॥३॥
हे प्राणनाथ तजो नहिं कबहूँ, तुमसोलगन लगाई जी ॥४॥ .. अपनो विरद निवाहो दयानिधि, दै सुख वृन्द बड़ाई जी ॥ ५॥"
बनारसीदासजी का रचा हुआ 'भविष्यदत्त चरित्र' पञ्चायती मन्दिर दिल्ली में मौजूद है। वह सं० १८९९ का लिपि किया हुआ है। उदाहरण
"पक्ष परम गुरु की नमौं, परम हिये धर भाव । भवसदत्त जस विस्तरौं, सारद करौं पसाव ॥
X
जिय भवसदत संजम लिया, उपज्या सुरह मिलाण । फिर निरवांणों पद लह्या, बावीस सन्धि सुप्रमाण ॥४॥" कवि का नाम लिपि कर्ता पण्डित जमनादास ने लिखा है।