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________________ [हिन्दी जैन साहिल का टोखरमाजी इतनी अल्पावस्था में यह अमर रचनायें करके परलोकवासी हो गये थे। '. "० टोडरमलजी का अध्ययन तो गम्भीर था, साथ ही वे व्याख्यानचतुर और वादविवादपटु भी थे। उनकी विद्वत्ता का प्रभाव राज्य पर भी पड़ा था। इसलिए उन्हें राजसभा में अच्छा स्थान प्राप्त था । उनका प्रखर पाण्डित्य राज्य की विद्वत्परिषद् के पण्डितों को अखरने लगा और वे कई बार पराजित होने से उन पर द्वेषभाव रखने लगे । कहा जाता है कि इस द्वेष का इतना भयंकर परिणाम हुआ कि ज्ञान के उगते हुए सूर्य को अल्पकाल में ही अस्त हो जाना पड़ा।" ( रहस्यपूर्ण चिट्ठी की भूमिका, पृ० ९-१०)। पं० टोडरमलजी की आध्यात्मिक रचना का स्वाद लीजिये "मंगलमय मंगलकरण, वीतराग विज्ञान । नमहुँ ताहि जातें भये, भरहंतादि महान ॥" "मैं मातम भर पुद्गलस्कंध । मिलिक भयो परस्पर बंध । सो असमान जाति पर्याय । उपजो मानुष नाम कहाय ॥ ३८ ॥" पंडित जी की गद्य-रचना कितनी सुंदर और सुधारवाद को लिये हुए थी, यह भी देखिये___ "गोत्रकर्म के उदय से नीच ऊँच कुल विष उपजै है। तहाँ ऊँच कुल विष उपजैं आपको ऊँचा मान है अर नीच कुल विष उपजैं आपको माचा मानें हैं । सो कुल पलटने का उपाय तो या भासै माहीं। तातें जैसा कुल पाया तैसा ही कुल विर्षे आप मान है। सो कुल अपेक्षा आपकौं ऊँचा नीचा मानना अम है। ऊँचा कुल का कोई निंद्य कार्य करै तो वह नीचा होइ जाय, अर नीचा कुल विष कोई श्लाघ्य कार्य करै तौ वह ऊँचा होइ जाय ।" मोक्षमार्गप्रकाशक पृ० ९० ।
SR No.010194
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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