________________
वित इतिहास]
१८५ हुए मान रहा था-उसका विचार स्वातंत्र्य अपाहत हो चुका था उसकी मात्मा गुरुडम' के बोझ से दबी हुई तिलमिला रही थी। ऐसे समय में पूज्यवर पं० टोडरमलजी ने क्रान्ति की आग सुलगाई, जिसमें गुरुडम' का खोखला पिञ्जर नष्ट हो गया। प्रभू के सेरा पंथ ने भूलों को रास्ता बताया और त्रसितों को सुख की साँस लेने का अवसर दिया। इस सामाजिक स्थिति का.प्रभाव साहित्य पर भी हुआ और ऐसी रचनाएँ प्रकाश में आई जो मये सुधार की पोषक थों, यद्यपि भतिवाद की लहर से वे भक्ती न रह सकीं।
पं० टोडरमलजी * इस शताब्दि के सबसे बड़े सुधारक, सस्ववेत्ता और प्रसिद्ध लेखक थे। दि० जैन सम्प्रदाय में वह ऋषितुल्य माने जाते हैं। केवल ३२ वर्ष की अवस्था में ही वह ऐसा अपूर्व और ठोस काम कर गये हैं कि सुनकर आश्चर्य होता है। टोडरमलजी ने अपनी रचनाओं से जैन समाज में तत्स्वान के बन्द हुए प्रवाह को फिर से बहाया था। कर्मफिलॉसफी की चर्चा करना केवल संस्कृत-प्राकृत के माता पण्डितों के बाँट में न रहाटोडरमलजी की रचनाओं को पढ़कर हिन्दी के माता साधारण पुरुष और बियाँ भी सत्त्वचर्चा करने में मप्रसर हुए थे। टोडरमलजी जयपुर के रहनेवाले थे। वह बण्डेलवाल श्रावक थे। सुनते हैंजयपुर राज्य के दीवान भमरचन्द्रजी ने भापको अपने पास रखकर विद्याध्ययन कराया था। १५.१६ वर्ष की उम्र में ही आप मायरचना करने लगे थे। जैनधर्म के असाधारण विद्वान थे। आपका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ 'गोम्मटसारवचनिका' है, जिसमें
....... पृ. १७१।